मुकुट कभी जो था ही नहीं,
उसको क्या खोना क्या पाना।
जिस सत्ता की चाहत ही नहीं,
लोलुपता में क्या मर जाना।
छीन अगर कोई जाए तो,
क्यूँ मैं उस पर क्षोभ करूँ ?
कीचड़ भी उछला है गर तो,
क्या उसका संताप धरूँ ?
सूरज की आतिश को कोई,
कैसे भला बुझायेगा?
गंगाजल में डालो हलाहल,
वो अमृत हो जायेगा।
उज्जवल, पाक ध्वजा पर कोई,
धब्बे लगा नहीं करते।
छोटी, छोटी, छिटपुट, छिटपुट,
ऊष्मा में क्या जल जाना।
सरिता की धारा है कविता,
उसको दूर तलक जाना.
2 टिप्पणियाँ:
ऊष्मा में क्या जल जाना।
सरिता की धारा है कविता,
उसको दूर तलक जाना.
shubkamnaayen
subhakamnayen ! kabhi na rukna.
nayeda & ankit.
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