आंधी आई धूल उडी,
और मैंने गढ़ ली एक कविता।
आँखों में किरचों से बन गए,
बह निकली आंसू की सरिता।
लौकी तरोई की पीली कलियाँ,
पोली मिटटी की सर्दी सा।
याद मुझे है फिर से आया,
खाना वो अधपका पपीता।
अम्मा की फटकारें मीठी,
चटनी की चटकारें तीखी।
गुझिया , घेवर और पकौडी,
सत्तू से वो भरी कचौडी।
मुह में रस सारे भर आये,
तुमने पढ़ ली एक कविता
1 टिप्पणियाँ:
सच में मुंह में रस भर गया.........
बधाई हो अविनाश.
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