मिहिर अस्त हो चला है,
सुस्त-सुस्त सी धरा है.
श्रान्त दिखती हैं भुजाएँ,
फिर भी मैं उत्ताल हूँ.
मंदप्रभ है भाल मेरा,
दीन-हीन हाल मेरा.
अलक-पलक झरे-झारे,
फिर भी मैं विकराल हूँ.
मुकुर में घावों के छींटे,
छाती स्वयं को ही पीटे.
शोक के इस मौन में,
मैं रोष का भूचाल हूँ.
ठोस-कुटिल श्वास हुई,
मृत्यु का आभास हुई.
हूँ नचिकेता नहीं पर,
हठी हूँ, बेताल हूँ.
मंजु मितुल हास जो था,
तप्त सा परिहास बना.
तम की है जो खाप चलो,
मैं भी महिपाल हूँ.
वात से मलय लजाया,
अघर्ण को राहु ने खाया.
कीट-कीट है धरा तो,
मैं भी महाव्याल हूँ.
मूक अभ्र रक्त भरे,
जैसे हैं चांडाल खड़े.
किन्तु मैं निर्भीक खडा,
दबीत का कपाल हूँ.
सूर्य की सौगंध मुझे,
रक्त ये झंझा करेगा.
धमनी में सोता झरेगा.
खड़ग ये दिप-दिप करेगा.
एक दिवस तम कहेगा,
मैं उसका महाकाल हूँ.
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श्रान्त= थका हुआ
उत्ताल= बहुत ऊँचा
मुकुर= आईना
मितुल= मित्र
अघर्ण= चन्द्रमा
दबीत= योद्धा
अभ्र= बादल
24 टिप्पणियाँ:
अविनाश,
फ़िर से एक बार छा गये हो।
"खड़ग ये दिप-दिप करेगा.
एक दिवस तम कहेगा,
मैं उसका महाकाल हूँ"
खून उछालें भरने लगता है, रोयें खड़े हो जाते हैं।
बहुत बधाई, ऐसी रचना रच देने पर।
एक दिवस तम कहेगा,
मैं उसका महाकाल हूँ.
ईश्वर आपके लेखनी का प्रकाश बनाए रखे..तब ऊ दिवस भी दूर नहीं रहेगा जब आपका ऊपर लिखा हुआ पंक्ति सच हो जाएगा!!
एक दिवस तम कहेगा
मैं उसका महाकाल हूँ -
बहुत सुंदर -दृढ -प्राण ,
शुभकामनाएं .
बहुत अच्छी कविता।
राष्ट्रीय एकता और विकास का आधार हिंदी ही हो सकती है।
Please give the meanings of difficult words used in your poems.It would make everybody understand your poems better.Thanks.
itni chhoti umra aur adbhut bhaw sansaar........
फिर भी मैं विकराल हूँ। ओजस्विता से पूर्ण।
Anupama ji,
Done!
Sorry for the inconvenience you faced.
Regards!
बहुत सुन्दर ....दबित का अर्थ नहीं पता था ....
itni shudh hindi...itne gehre bhaw..amazing..
एक बेहतरीन प्रस्तुति हमेशा की ही तरह एक एक शब्द सधा हुआ और सीधा दिल में उतरता हुआ
waah...kya khub likha hai..
maza aa gaya padkar...
mere blog par v aapka swagat hai....
ओजस्वी रचना.
आपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
बहुत बढ़िया ! उम्दा प्रस्तुती!
आप की रचना 03 सितम्बर, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपनी टिप्पणियाँ और सुझाव देकर हमें अनुगृहीत करें.
http://charchamanch.blogspot.com/2010/09/266.html
आभार
अनामिका
अविनाश चंद्र जी
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं !
कैसे हैं ? आपके यहां जब जब मैं नहीं आ पाया , तब तब मैंने कुछ खोया ही है …
बहुत मनोयोग से आप सृजन मग्न हैं ।
सूर्य की सौगंध मुझे,
रक्त ये झंझा करेगा !
धमनी में सोता झरेगा !
खड़ग ये दिप-दिप करेगा !
एक दिवस तम कहेगा…
मैं उसका महाकाल हूं !!
बहुत बहुत प्रखर लेखनी !
साधुवाद !
मंग़लकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
सुंदर रचना ,प्रभावशाली है ।
As usual, another wonderful piece of your creative work.
देखो भाई अविनाश,
पहले भी कह चुका हूँ शायद, बहुत क्लास पढ़े हो!
पहले मैंने पूरा जोर लगाके तुम्हारी कविता पढ़ी.
फ़िर टिप्पणियों की तरफ रुख किया.
आज तुमने अपना बहुत सा समय खराब किया है मुझे पढने में.
एक बात कम से कम पता चल गयी होगी के भैय्या तुम जो लिखते हो मेरे बियोंड है!
आशीष
--
अब मैं ट्विटर पे भी!
https://twitter.com/professorashish
आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद
@आशीष..
साहब, बियोंड का तो तो पता नहीं, पर अगर समझ नहीं आयीं तो ये मेरी कमोजोरी/नाकामी/असफलता है...
अपने इतना वक़्त और कोशिश दोनों दिए इसका शुक्रिया.
बाकि मैंने अपना समय जरा भी ख़राब नहीं किया...इसकी गारंटी देता हूँ :)
और क्लास तो क्या कहूँ...रिपीट बयानी होगी...काश कभी पढ़ा होता कुछ , हे हे हे
सूर्य की सौगंध मुझे,
रक्त ये झंझा करेगा !
धमनी में सोता झरेगा !
खड़ग ये दिप-दिप करेगा !
एक दिवस तम कहेगा…
मैं उसका महाकाल हूं !!
ओजस्वी रचना.
बहुत ही सुन्दर रचना ,दिल से लिखी रचना जो सीधे दिमाग़ पर वार करती है। मुबारकबाद व धन्यवाद।
आपकी रचना बहुत ही सुंदर है
बहुत बहुत बधाई
आप सभी का बहुत बहुत आभार..
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