रोष जनित यह मौन तुम्हारा,
करता है आघात प्रिय.
इससे तो किंचित अच्छा था,
रव का भौतिक उत्पात प्रिय.
उज्जवल नभ का नील वर्ण,
औ मन उपवन का हरित गात.
सब मौन की काली छाया है,
सन्नाटे का आलाप प्रिय.
कुहकनी के लब्ध स्वरों में थे,
जो स्नेहिल पुट आत्मीयता के.
वो अब तुषार के काँटें हैं,
धमनी-धमनी संताप प्रिय.
मैं दीप बना इतराता था,
नित शलभ मार गर्वाता था.
अब किस पानी में डूबा हूँ,
जो बहता है बेनाद प्रिय.
अपनेपन के अवगुंठन बिन,
स्मृतियों में है तीखा कम्पन.
अनुरंजित कलियों का वैभव,
लगता है ओछी बात प्रिय.
पराग बुना करते दुकूल,
रेणु-पथ पर था संगीत विपुल.
हर स्वर कलरव अब अस्फुट हैं,
गीतों से उड़ती भाप प्रिय.
नव अशोक के राग-राग,
यूथी के स्वर्णिम पुष्प-पात.
इनका यौवन एक भ्रम सा है,
तेरी आशी के अनुपात प्रिय.
तुहिन विन्दु सा अक्षत हास,
करता था तुममे निवास.
अब सीपी स्वाति की बातें,
हैं पावस का परिहास प्रिय.
संसृति के अगणित तारों में,
आँसू थे सदा मुदित निर्झर.
सारे अब खारे सागर हैं,
हर ठौर ही रखे घात प्रिय.
दृग-पुलिनों पर हिम सी करुणा,
पावन गंगा अति मृदु वरुणा.
यह सब कुछ काई-काई है,
तुमको भी तो है ज्ञात प्रिय.
*****************
दुकूल= एक प्रकार का कपड़ा
यूथी= जूही
आशी= मुस्कान
तुहिन= शीत ऋतु/ तुषार
वरुणा= एक नदी
रेणु= मिटटी से उत्पन्न/बना
28 टिप्पणियाँ:
sundar geet
कोमल स्पंदन लिए भावों की निर्झरणी -सा प्रवाहित गीत !
awesome!
मन के भावों का प्रवाहमय प्रभावशाली प्रस्तुतिकरण ...
kya likh jate ho , kabhi gaur kiya hai ........ bahut sundar
मौन काटता है,
अस्तित्व बाटता है।
ultimate avinash bhai
बेहतरीन।
bhut khub avinaash ji yeh ehsaas hr koyi hr baar hi nhin blke baar baar krtaa he . akhtar khan akela kota rajsthan
अबिनास जी, आज त आप भाव सलिल प्रवाहित कर दिए... हम त बस एक एक लहर में गोता लगा रहे थे... को बड़ छोट कहत अपराधु...आज बस आँख बंद कर स्नान कर लेने दीजिए...
वाह......क्या बात है..............
पढ़ते हुये इतना आनन्द आया...............
सुंदर प्रस्तुति!
हिन्दी हमारे देश और भाषा की प्रभावशाली विरासत है।
bahut sunder aur bhav bhara geet.. chahyavaadi yug kee yaad dilati
बहुत ही उम्दा जानकारी दी है आपने
पढ़कर अच्छा लगा
संसृति के अगणित तारों में,
आँसू थे सदा मुदित निर्झर.
सारे अब खारे सागर हैं,
हर ठौर ही रखे घात प्रिय.
kisi rashtrakavi ki rachna lagti hai ....
कुह्कानी के लब्ध स्वरों में थे
जो स्नेहिल पुट आत्मीयता के
वो अब तुषार के कांटे हैं
धमनी धमनी संताप प्रिय
वाह .....अद्भुत शब्द संयोजन .....
बहुत उम्दा लेखन ....!!
@ बहुत ही उम्दा जानकारी दी है आपने
पढ़कर अच्छा लगा
कविता से जानकारी ....?
बेहतरीन रचना....... बहुत खूब!
आप सभी का आभार.
राजकुमार जी, समझा तो मैं भी नहीं... जानकारी??
कैसी जानकारी?
कृपया बतायें, वक्त मिले तो...
:):):):):):):)
:D :D :D :D :D
KAVITA k liye to keh hi chukin hoon..bahut achi hai...:)
magar kuch aur wajah se bhi khushi hui.......achha hi hua Mumma k blog se tere blog tak aayi......
bless you !!
अविनाश,
कविता की बहुत जानकारी नहीं है अपने को, लेकिन तुम्हारा शब्द संयोजन गज़ब का है। पढ़ना शुरू करो तो सांस लेना ही भूल जाते हैं दोस्त।
अपना परिचय नहीं है ज्यादा, प्रश्न अगर असंगत लगे तो इग्नोर कर देना.
क्या तुम्हारी कविताओं का कोई संकलन छप चुका है अब तक?
संजय जी,
परिचय अधिक नहीं है, मानता हूँ मैं.
लेकिन यहाँ यह बात सवाल करने में कतई बाधक नहीं है न?
और फिर आपने ऐसा कोई असंगत प्रश्न नहीं किया.
आप आत़े हैं, कविता पढ़ते हैं, इतना बहुत है मेरे लिए. कविता की बहुत समझ तो मुझे भी नहीं.
मेरी कविताओं का कोई संकलन अब तक तो नहीं छपा, भविष्य में कुछ हो शायद.
आपने जो ईमानदार शब्द दिए उनका कृतज्ञ हूँ.
मन को छू लेने वाला बेहद रसपूर्ण गीत
बहुत ही ख़ूबसूरत कविता है...शब्दों का इतना सुन्दर संयोजन हैं कि जितनी तारीफ की जाए कम...
प्रिय अविनाश,
कृतज्ञ तो हम हैं तुम्हारे, इतने खूबसूरत अंदाज़ में ऐसे अल्फ़ाज़ दिल तक पहुंचा देते हो।
दिलीप(दिल की कलम) और तुम्हारी लेखनी में जादू है और वो भी इस उम्र में, काबिल-ए-तारीफ़।
उम्र में तुमसे बड़ा हूँ, दिल से शुभकामनायें दे रहा हूँ कि बहुत नाम कमाओ और तुम ऐसा करोगे।
तुम्हारे अपनों को नाज होगा तुमपर।
जब भी तुम्हारा काव्य-संकलन छपे, ब्लॉग पर जरूर सूचित करना।
:)
बेहद उम्दा और भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
बहुत ही सुन्दर लय है इस कविता की......
जाने क्यों इन्हें पढ़कर महादेवी वर्मा जी की पंक्तियाँ याद आ गयी...........
क्या पूजा क्या अर्चन रे!
उस असीम का सुन्दर मंदिर
मेरा लघुतम जीवन रे !
बहुत ही सुन्दर लय है इस कविता की......
जाने क्यों इन्हें पढ़कर महादेवी वर्मा जी की पंक्तियाँ याद आ गयी...........
क्या पूजा क्या अर्चन रे!
उस असीम का सुन्दर मंदिर
मेरा लघुतम जीवन रे !
Post a Comment