अम्मा की याद....

जब ब्लेड से नाखून काटते,
अंगुलियाँ कट जाती हैं।
जब नहीं छूटता दाग कालर का,
ख़त्म हो जाता है नमक,
उबलती दाल के बीच में।
जल जाती है चौथी भी रोटी,
सिर्फ तब ही नहीं,
अम्मा हर पल याद आती हैं।



अम्मा के नखरे....

कभी शंकर कभी,
चावल के कंकर।
अम्मा यूँ बेवजह,
भड़क जाती है।
उस दिन खीर-दलिया,
ही थाली में आती है।
ये वो दिन होते हैं,
जब नमक होता है,
दाल में ज्यादा या फिर,
सब्जी ज़रा जल जाती है।



अम्मा का प्यार....

मैंने पूछा जब अम्मा से,
इतना प्यार कहाँ से लाई?
अम्मा बोली चल रहने दे,
मुझे पर हल्का सा मुस्काईं।
लगा हैं जैसे अम्मा सागर,
और लहर मीठी टकराई।
सागर कहाँ गिना करता है,
कौन नदी कितना जल लाई?




अम्मा का घर.......

पिता पूज्य हैं,
तेज है भाई।
मेरी मईया,
गीता है।
ये सौभाग्य,
मेरे मानस का।
हर क्षण में,
कल्पों जीता है।




अम्मा का फैशन....

धमका के पापा को,
दे के हवाला होली का।
नाम ले के टूटी पायल का,
दिखा के चटकी चूडियाँ चार।
अम्मा ने फिर मुझे बुलाया,
और तनक के चली बाज़ार।
आ चल रे मुन्ना तेरे लिए,
नए जूते खरीद लायें।




अम्मा की आदत....

ये लाल, ये पीली,
हाँ काली वाली और,
हाँ वो बैंगनी सफ़ेद।
अरे वो केसरिया भी,
सबमे से एक एक दे दो।
माँ आज भी मेरी खातिर,
हर ताबीज खरीदती है।




अम्मा की रामायण........

घना जब जब,
होता है अँधेरा।
आती हैं बड़ी मुश्किलें।
माँ बन जाती हैं बालि।
और प्रभु श्रीराम तक,
माँ से डरते हैं।



अम्मा का गुस्सा..........

" आज खेलने गया तो,
टांगें वापस मत लाना।
वहीँ बैठ के जपना जंतर,
खाना भी नहीं मिलेगा।"
खूब पता है तेरा अम्मा,
भूखा बेटा कहाँ रहेगा।
आज रोटियाँ नहीं मिलेंगी,
गुस्से का घी पुए तलेगा.....

2 टिप्पणियाँ:

रज़िया "राज़" said...

अब और रोने की हमारा में हिंमत नहिं है भाई मेरे।

आपकी रचना ने हमें भी अपने याद दिला ही दीये।

Avinash Chandra said...

shukriya jo aap aayin...rone ki jarurat nahi..ye amma ki meethi yaadein hain