तुमसे नाता...

बड़ा अच्छा लगता है,
आना चुपके से हर रात.
तोड़ देना दो बाल,
तुम्हारी पलकों के कोने से.

घुस जाना बंद आँखों में,
तुम्हारी बेआवाज ही.
बैठना ज़रा देर तक,
तुम्हारी आँखों के जजीरे पर.
अरे सुस्ताने का हक़,
मुझे भी है आखिर.

फिर चोरी से नहाना,
आंसू की उस एक बूँद में.
जो मेरी कसम पर,
तुमने लुढ़काई नहीं.

खेलना तुम्हारी बातों से,
तुम्हारे ही सपनों में.
पी लेना मीठी सी,
हंसी तुम्हारी लाबाबदार.

उफ़ सुबह होते ही,
जाग जाओगी तुम.
और मेरा नहीं होना बन जाएगा,
तुम्हारे आँखों की किरचन.

पर घबराओ मत तुम,
वो दो बाल हैं ना?
जो तोडे थे रात मैंने,
पलकों से तुम्हारी.

उन्हें हाथ में लो,
रात मांग लो एक बाल से.
और दूजे से रात में मुझको,
मैं फिर आउंगा......

0 टिप्पणियाँ: