माँ का प्रेम बड़ा निच्छल है,
पिता का प्रेम भी कम तो नही।
आँचल में है माँ के ममता,
पर नमी पिता की कम तो नही।
बेडी है पांवो की मैया,
हरदम जो बांध जाती है।
सांझ सवेरे हरदम मेरे,
बेध ह्रदय को जाती है।
पिता का प्रेम अजर सा है,
जो हरदम संबल देता है।
अग्रसर हो जीवन पथ पर,
हर क्षण ये ही कहता है।
माँ को मोह है के बेटा,
मेरी गोद निहाल रहे।
जी भर भर खाए निवाले,
आँखें सुख से मालामाल रहे।
उस माँ का पुण्य ,
है उच्च बड़ा।
दर्जा उसका है ,
पूज्य बड़ा।
पर प्रेम पिता का,
उच्चतम है।
सब श्रेष्ठों में,
श्रेष्ठतम है।
उसकी लाठी ना भले बने,
बरसों चेहरा न दिखे भला।
तू रहे जहाँ उन्नति करे,
परचम फैला खुशहाल रहे।
है मोह जो माँ का व्याकुल है,
मुझको पाने को आकुल है।
वो हहर सा मुझ बिन जाती है,
आंखों से नीर बहाती है।
पर अद्भुत धीर पिता का है,
वो देता है, बस देता है।
कभी प्यार मुझे, फटकार मुझे,
कभी दुआ और दवा मुझे ।
वो पलके नही झुकाता है,
जब देता है स्टेशन पे विदा।
के देख न लूँ सागर की सी,
गीली आंखों में प्रेम बसा.
इस जीवन का प्रिय,
एक दिन और बीता।
आज भी ना आये तुम,
मैं फिर से रह गयी रीता।
तुमने मेरी सुधि बिसारी,
मेरी सहचर याद तुम्हारी।
आँखों के मोती से सींची,
कुचले सपनो की ये क्यारी।
हर मजबूरी है तुमको ही,
मैं तो बस खुद से ही हारी।
पलक झपकना भूल गयी हैं,
देखते देखते राह तुम्हारी।
तुम आये ना आया सावन,
होली भी ना थी मनभावन।
बस महकी थोडी फुलवारी,
फिर आयी है याद तुम्हारी.
तुम्हारे खतों का आना,
मेरा पढ़ना,
रोना,चुपके से
और कभी कभी,
खिलखिला देना,
चांदनी बिखरा के।
जारी है,
सतत, अनवरत,
पाँच साल से।
पूछना तुम्हारा,
कैसे हो???
अच्छे होगे.......
खुश ही होगे,
मैं भी ठीक हूँ,
चिंटू के पापा भी।
खरीदी पिछले महीने,
नयी एक गाडी है।
सतत, अनवरत।
पाँच साल से।
कैसे लिखूं???
पाँच साल पहले,
तुमने दिल तोडा था।
अब धड़कन टूट रही है,
मुझे दिल की बीमारी है,
पाँच......................साल से........
ध्वनि...
भीड़ के शोर में,
तनहा फिरता हूँ।
तुम्हे याद करता,
सड़क पार करता हूँ।
टक्कर मार दे,
बस कोई,
मिल जाए यूँ ही,
कहीं मुझे शनि।
के अब सुनाई ना दे,
कोई ध्वनि....
वक़्त....
बेइन्तेहान मजबूर,
पिता कहते हैं।
घबरा मत,
तेरा वक़्त आएगा
"आपका कभी ,
आया क्या पापा?"
प्यार कम नहीं होता.....
पापा नाराज हैं आजकल,
बात नहीं करते मुझसे।
जाने माँ को हर घंटे,
फ़ोन लगा कर कौन देता है।
दूरी.....
तुमसे नौ सौ ,
संतानबे किलोमीटरकी दूरी,
रोज तय करता था।
ख़्वाबों में।
अब दो साल ,
हुए मिले हुए।
तुम ब्याह के,
बगल वाली गली ,
आ गयी हो ना??
कैसे लोग??
ऊँची अट्टालिकाएं,
छोटे लोग।
नोट खरे और,
खोते लोग।
बड़े शहर के ,
गजब के पत्थर,
बड़े गजब के,
होते लोग।
इकलौता वादा...
कब कहा,
मैं पानी पर चल जाऊँगा।
कब कहा,
मैं चाँद तोड़ कर लाऊंगा।
कब कहा,
मैं राह में फूल बिछाउंगा।
कोई वादा तो,
किया नहीं।
के हर ख़ुशी दिलाऊँगा।
पर कभी रोना मत,
दुखी तुम होगे,
अश्क मैं बहाउंगा।
हथेली उनकी...
चार अंगुलियाँ,
चार वेद हैं।
और अंगूठा ,
मेरा है।
मेरे हर छोटे,
पग पग भी।
पिता का साया,
घनेरा है।
सरकारी टीके....
जब कई दिन ,
घर से दूर होता हूँ।
जब मीठे दोस्तों से,
बात नहीं करने पर,
मजबूर होता हूँ।
जब नहीं खा पाता,
बर्फ के गोले।
चावल हाथों से,
अंगुलियाँ चाट के।
तब बचपन याद दिलाते हैं,
कन्धों पर जड़े तीन टीके।
जो हैं मेरे जन्म से,
सरकारी साथी......
Dangling down the fairy Dolphin Mountains,
I am there.
Crystallizing in the meandering Amazon,
I am there.
Under the deep vast Nile base,
I am there.
Beneath the snoopy, larky, creamy Greenland,
I am there.
From dip most Andes to the highest Rockies,
From thorny savannas to Bermuda triangle,
I am there.
Into the breeze passing your window,
Into the splashes of the first monsoon,
In the dropping sweat in a hot afternoon,
I am there.
Passing through the Chittgaon mangroves,
Blowing through the Malgudi streets,
In the damp of ran of Kucch,
I am there.
In the agony of your past,
Into the ferocity of your future,
Melancholy of your present,
I am there.
Burning in the gloomy sun,
Paining in the lonely night,
Whispering when you are so quite,
I am there.
Burnt into ashes,
I am there.
Buried into grove,
I am there.
Talking from coffin,
I am there.
Dissolved into Gangas,
I am there.
I don’t have a shrine.
Neither have a monument.
Open your eyes,
I am nowhere.
But feel it,
smell it,
inhale it,
Into every bit of oxygen you inhale,
Every smell u feel…..I am there………..there for ever.
आंधी आई धूल उडी,
और मैंने गढ़ ली एक कविता।
आँखों में किरचों से बन गए,
बह निकली आंसू की सरिता।
लौकी तरोई की पीली कलियाँ,
पोली मिटटी की सर्दी सा।
याद मुझे है फिर से आया,
खाना वो अधपका पपीता।
अम्मा की फटकारें मीठी,
चटनी की चटकारें तीखी।
गुझिया , घेवर और पकौडी,
सत्तू से वो भरी कचौडी।
मुह में रस सारे भर आये,
तुमने पढ़ ली एक कविता
मुकुट कभी जो था ही नहीं,
उसको क्या खोना क्या पाना।
जिस सत्ता की चाहत ही नहीं,
लोलुपता में क्या मर जाना।
छीन अगर कोई जाए तो,
क्यूँ मैं उस पर क्षोभ करूँ ?
कीचड़ भी उछला है गर तो,
क्या उसका संताप धरूँ ?
सूरज की आतिश को कोई,
कैसे भला बुझायेगा?
गंगाजल में डालो हलाहल,
वो अमृत हो जायेगा।
उज्जवल, पाक ध्वजा पर कोई,
धब्बे लगा नहीं करते।
छोटी, छोटी, छिटपुट, छिटपुट,
ऊष्मा में क्या जल जाना।
सरिता की धारा है कविता,
उसको दूर तलक जाना.