तुम्हारे हाथ से...
अगली बरसात से पहले,
निचोड़ देना कुछ एक,
बादलों को मुठ्ठियों से।
वो खुशबूदार बरसातें,
कुछ मैं भी तो देखूँ।
सुकून की वजह..
रात की काली चादर पर,
जब एक सितारा भी,
ना तैयार हो टिमटिमाने को।
जाने कहाँ से टांक देती है,
माँ छत पर धूप के बादल।
जो कीमत दो...
धूप के मकान में रहती,
तुम एक अलसाई सी नदी।
रौशनदानों से झाँकता तिफ्ल,
मैं बेपानी बादल का टुकडा।
किसी सीली दोपहरी,
एक टुकडा धूप,
दो छल्ला भाप दे दो।
मैं बरसात खरीद लाऊँ।
क्यूँ?
बिलावजह का तुम्हारा,
लगातार बोलते जाना।
मेरा अरसे तक यूँ ही,
चुप रहना बिलावजह।
वजह होने की वजह,
ज़रूरी भी तो नहीं।
जब तक ना लौटूँ....
वक़्त को घूँट-घूँट,
कर पी लेना।
एक एक सब,
दिन काट लेना।
दुआ है तुम्हारी उम्र,
वक़्त से लम्बी हो।
लिखे बिना...
तुम्हे कुछ शब्द दूँ,
खुशबू की शीशीयों से?
मन के कमरों में खोलना,
ये नज़्म बन जाएँगे।
आवाजें...
कच्ची लकड़ियों के,
पुल सी मेरी चुप पर।
उछाल देते हो तुम,
खिलखिलाहट की एक गेंद।
लोग कहते हैं ग्लेशियर,
टूटा है दूर कहीं।
माँ...
कोने कोने तलाशती है।
देखे बिना मुझे,
तरस जाती है।
आने की तसल्ली,
भर से हुलसती है।
राह की हर धूप पर,
माँ बरस जाती है।
बदलने की कोशिश में...
कंचों को रोज तोड़ना,
सिर्फ इस उम्मीद में,
कि निकल आयें,
नीले-केसरिया बुलबुले।
तुम्हारे 'तुम' का कातिल,
तो मैं बचपन से था।
46 टिप्पणियाँ:
kahan se late ho beta baadlon ko mutthiyon mein ,nichodte indradhanush ban jata hai
बहुत ही सारगर्भित रचना ....बधाई
आज का दिन बहुत अच्छा है, ब्लॉग जगत की सृजनता सर चढ़ कर बोल रही है। पढ़ पढ़ कर आह्लादित हूँ। अनुपम कृति।
wah Wah....har kshnika laajwab
उत्तम है आपकी लिखी पंक्तियाँ ।
"रात की काली चादर पर,
जब एक सितारा भी,
ना तैयार हो टिमटिमाने को।
जाने कहाँ से टांक देती है,
माँ छत पर धूप के बादल।"
~मुझे सबसे अच्छा लगा...
ऐसे ही आप कुछ लिखिए , हम पढ़ते रहे
यज्ञ
... bahut sundar ... behatreen rachanaayen !!!
हमेशा की तरह हर एक शब्द बोलता हुआ
आर्य…
जब भाव बहते हैं तो शब्दों क सामर्थ्य नहीं होता उन्हे बान्धने का…… सो मौन रहूँगा रचनाओं पर।
बस एक आपकी ही पन्क्ति आपको समर्पित कर रहा हूँ :
"दुआ है तुम्हारी उम्र
वक़्त से लम्बी हो"।
...
अविनाश, तारीफ़ तो सब कर ही रहे हैं, हम तो तुम पर दोष लगाने आये हैं।
जब आडियो कैसेट्स का जमाना था तो अधिकतर कैसेट्स में एक साईड बहुत अच्छे गाने होते थे और दूसरी साईड में ’टाईम पास’ टाईप के गीत। मैंने कहा दुकानदार से कि ये दो कैसेट्स में से एक एक साईड अच्छी है और एक एक बेकार. अगर कंपनी फ़िल्मों का ही सही सैलैक्शन करती तो एक ही कैसेट खरीदने से काम चल जाता। दुकानदार ने कहा, कंपनी तुमसे ज्यादा समझदार है, उसे दो कैसेट्स बेचने हैं इसलिये ऐसा किया।
तुम भी दोस्त, एक पोस्ट में सारी मारू चीजें एक साथ डाल देते हो। बिज़नेस में कामयाब नहीं हो सकते तुम भी।
सब कुछ इतना अच्छा मत लिखा करो। कहीं नजर न लग जाये हमारी, बता दिया है।
पुस्तक कब छप रही है?
..
कविता का नित्य
अर्थ निचोड़ना
सिर्फ इस उम्मीद में
कि निकल आये
कोई अकल्पित रस.
कविता में छिपे कवित्व को
[अविनाश की अभिव्यक्ति को]
खोलकर समझने का
स्वभाव तो मुझमें बचपन से है.
........... 'कंचे और उसके बुलबुले' से समरूपता 'किसी के तुम की आदत को छुडाने की कोशिश' .......... एक शानदार और नवीनतम बिम्ब आपने सृजा है आपने अविनाश.
..
pahli wali arth mujh par nahi khula avinash...agar agli barish se hi baadal nichod diye jayengen ..to aglish barish men barsega kya? main confuse ho gaya isme...
baki kee kshanikayen bahut hi pasand aayeen...
avi
लिखे बिना ... तुम्हे कुछ शब्द दूँ , खुशबू की शीशियों से ? मन के कमरों में खोलना , ये नज़्म बन जाएँगे। आवाजें
Sach kahu.. Abki baar yeh shabd tumhare nhi hain..
Ex: dhoop ke makaan sa ye
Hai safar dhalan sa ye
mod mehrbaan sa hai ye
..
Man ke kamron mein wo khole khushbu wali sheeshiyan
Wo sahilon pe dhoondta ishq wali seepiyaan..
Isliye :(
dipali,
yakin dilane ko to nahi kah raha...awaak hun
maine ye gana abhi abhi suna...aapke batane ke baad.
inhe likha koi 3 din pahle tha maine...
fir bhi... maafi chahunga
स्वप्निल भैया,
सब नहीं, कुछ-एक बादल निचोड़ने हैं...मेरे यहाँ बारिश नहीं होती...तभी तो कहा ..."वो खुशबूदार बरसातें
आप सभी का बहुत बहुत आभार!
@गिरिजेश जी,
आज कुछ भी नहीं?
@संजय जी,
मैं चढ़ गया चने के झाड़ पर... गिरा तो?
पुस्तक का क्या पता, अभी कोई आसार नहीं दिखते :)
फिर छपने को कुछ होना भी तो चाहिए.
प्रतुल जी,
आपका आना शीतल बयार है...आभार!
@रवि भाई,
और? मैं सुन सुन थका जाता हूँ...आप कर कर नहीं थकते? :)
इस नेह का धन्यवाद नहीं कहूँगा...रख लूँगा
@दिपाली
Transliteration काम नहीं कर रहा था इसलिए Roman में ही लिखा ऊपर.
@रश्मि जी,
:)
तुम्हे कुछ शब्द दूँ,
खुशबू की शीशियों से?
मन के कमरों में खोलना,
ये नज़्म बन जाएँगे।
हर एक बेहतरीन ...बहुत संजीदा भाव ..शुक्रिया
चलते -चलते पर आपका स्वागत है
प्रवीण पाण्डेय जी से शब्दशः सहमत. उत्कृष्ट क्षणिकाये.
अद्भुत लेखन्…………हर क्षणिका एक अलग ही दुनिया मे ले गयी…………………बेहतरीन्।
uffffff..........
dua qubool ho jaane par kaisa lagta hai ?
shukriya ye likhne ke liye, bohot bohot shukriya. itni khoobsurat, itni zaheen, phir bhi itni maasoom....qatl hain sabhi....ek ek misra kamaal hai...toooooooo good !!!
hota hai kabhi kabhi..
@दिपाली..
मेरे साथ दुबारा हुआ है, क्यूँ, कैसे तो नहीं पता... पर हुआ है चार साल बाद दुबारा, ये सच है.
खैर, शुक्रिया!
और अभी क्या कहूँ...
@साँझ,
ये सवाल था? तो अच्छा लगता है....
और तारीफ थी ... तो इतने के काबिल नहीं मैं... :)
शुक्रिया!
बेशक एक लाजवाब पोस्ट दी है आज आपने ब्लागजगत को .
हालात ने परेशान कर रखा है, स्थिर नहीं हो पाटा हूँ... मैं भी आज यही कहना चाहता था कि एक साथ सारा स्टॉक हम पर भी भारी हो जाता है.
अविनाश जी,अब तो अच्छा जैसा शब्द भी हार जाता है कविता कि खूबसूरती से!!
कच्ची लकड़ियों सी पुल मेरी चुप पर, तुम उछाल देती हो खिलखिलाहट की इक गेंद।
सुभान- अल्ला।
गज़ब ... इन छोटी छोटी क्षणिकाओं में बहुत गहरी और लम्बी बात है ... बहुत कमाल ...
... टिप्पणी करने के बाद एक 'आत्मीय' ब्लॉगर के साथ देर तक आप के बारे में बात करते अपना फ्रस्ट्रेशन निकालता रहा। बहुत व्यस्त हूँ लेकिन थोड़ा समय मिला तो यहीं आया - देखने।
दिपाली आब की टिप्पणी देखी और मन मसोस कर रह गया।
काश! आप की ईमेल आइडी मेरे पास होती।
आप सबका धन्यवाद!
@गिरिजेश जी,
फ्रस्ट्रेशन?
क्या हो गया?
मुझसे कोई भूल?
वैसे आपको मेल कर दिया है, आईडी मिल गई होगी.
आप इतनी व्यस्तता में से समय निकाल के आए...बहुत आभार!
avi...
:)
अविनाश जी,
नमस्ते!
और क्या?
हा हा हा....
आशीष
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नौकरी इज़ नौकरी!
हर एक बेहतरीन ,बधाई
wah .ek se badh kar ek .bahut sunder.
क्षणिकाएँ पढीं और कमेंट्स भी पढ़ती रह गई .अब मेरे कहने को कहाँ कुछ !
उफ़ तेरी कवितायें....
लिखूं तो क्या लिखूं मैं
इन अपनी प्रतिक्रिया
मैं ज़रा इनमें डूब तो लूँ....
तब तुझे कुछ कहूँ....
ए अविनाश....!
सारी क्षणिकाओं ने भिगो सा दिया ...बादल बरसा भी और धूप निकल आई है ...
बहुत सुन्दर
धन्यवाद सभी का.
what an imagination n more wonderful emotions....it's hard to choose the best....mazaa aa gaya padh kar...all are tooooo good
तुम्हे कुछ शब्द दूँ,
खुशबू की शीशीयों से?
मन के कमरों में खोलना,
ये नज़्म बन जाएँगे।
राह की हर धूप पर,
माँ बरस जाती है।
एक टुकडा धूप,
दो छल्ला भाप दे दो।
मैं बरसात खरीद लाऊँ।
क्या कहूँ? इतना कहूँगी दो-तीन बार पढ़ चुकी हूँ.
atii sunder kshanikaayeiN...
संभवतः पहलीबार आपके ब्लॉग पर आया हूँ. रचनाये बहुत सुन्दर और प्रौढ़ लगी. रचनात्मकता हो है ही कुछ सोचने - समझने को मजबूर भी करती है...अब आपका समर्थक बन गया हूँ अब तो रचनाये मिलती ही रहेंगी देर सबेर......क्षमा कीजियेगा मै नियमित पाठक/ लेखक नहीं हूँ अभि तो एक वर्ष भी नहीं हुआ इस शौक को अपनाए......आप हमारे ब्लॉग पर आये अच्छा लगा...
आप सभी का धन्यवाद
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