दो अधूरे गज वसन में,
काट लेना शिशिर-पौष।
बुला लेना जीर्ण स्व को,
जोर से कौस्तु.....भ!!!!!!
एक युग तक जीना,
समेटे हुए आक्रोश।
कल्पों तक सुनना,
हितैषी क्षमा के गीत।
पुनीत पत्राँजलियों पर,
टेकना मत्थे-सीस।
सहेज के रखना,
ध्रुवनंदा की सैकत।
हो जाना पवित्र से,
ध्यान कर रसाल परिमल।
रोहिणी विलोचन,
आदि-अनादि-इत्यादि का।
प्रातः मरिचियों में,
धो लेना अमर्ष।
संभव हो यथा,
अथ स्व विमर्श।
एक वही है विक्रांत,
जिसने रच दिया,
तात, मनु को, गौतम,
शिवी-भगीरथ रहना नत।
द्युतमान अलौकिक मिहिर को,
देना अर्घ्य नित्य-प्रतिदिन।
गुनना ऋचाएँ जो कुछ,
महि से भी पुरानी हैं।
हो जाना निस्पृह-निस्पंद,
गोस्वामी स्व-सायुज्य।
लगे प्रकृति को भी यह,
विवृत प्राकृतिक ऋत।
किन्तु भू पर रह,
यह कर पाने को।
चढ़ना ही नहीं अपितु,
देग में खौलना होगा।
उरगों के निदाध को,
करना होगा जड़वत।
अरण्य का विजेता,
अमोघ नाहर बनना होगा।
यामा जब जब सुनाये,
सुरसा सी निर्दयी हँसी।
बन कर अजेय भास्कर,
धिनान्त के आगे लड़ना होगा।
निःसंकोच करो यापन,
जीवन बन निर्मल कण।
किन्तु समय कहे तो,
पौरुष भी तोलना होगा।
उठा कर महाबली भुजाएँ,
तड़ित से तेज गरजना होगा।
रख देने होंगे अश्वगंधा पुहुप परे,
भीषण आयुधों को धरना होगा।
24 टिप्पणियाँ:
gahan klisht shabdon ke madhya bhawnayen utni hi komal hain ... to kuch komal shabd kyun nahi
bahut achhi rachna hai
gahre bhav
www.deepti09sharma.blogspot.com
उत्साहित करती हर एक पंक्ति।
आपकी इस पोस्ट का लिंक कल शुक्रवार को (२६--११-- २०१० ) चर्चा मंच पर भी है ...
http://charchamanch.blogspot.com/
--
तत्सम शब्दावली में
प्रस्फुटित अनुपम काव्यधारा
प्रेरणा भी,,, आह्वान भी ,,,
अभिवादन स्वीकारें .
शुभकामनाओं के लिए शुक्रिया .
कहेंगे कुछ जन, कवि!
सारंगी क्यों बजाते हो?
वीणा है बाँसुरी है
जलतरंग ध्वनि है
इन्हें बजाओ न!
तुम कह देना -
मेरे सुर सारंगी में ही ठीक बजते हैं।
पुरनियों ने कहा है - सारंगी मनुष्य के स्वर के सबसे निकट है।
और
मेरी गढ़न में वे कुछ अधिक ही हैं
मुझे इस प्रकार का मनुष्य होने पर गर्व है।
gahan shabdo se labrez nirmal kavita.
agree wid rashmi di.. Beautiful
कविवर, marvellous की हिन्दी क्या होती है? वही हो तुम,वही है तुम्हारी प्रस्तुति।
तीसरी बार आया हूँ, अभिभूत होकर लौटने के लिये। शब्द ही नहीं सूझते कि तारीफ़ कर सकूँ।
ज्यूँ-ज्यूँ आगे बढ़ते हैं, भाव स्वत: ही रस विशेष की ओर खींच ले जाते हैं। और अंतिम पंक्तियां,
"उठा कर महाबली भुजाएँ,
तड़ित से तेज गरजना होगा।
रख देने होंगे अश्वगंधा पुहुप परे,
भीषण आयुधों को धरना होगा।"
इनके लिये एक अलग से, वही 'marevellous'.
आभारी हूँ अविनाश, कि तुमसे परिचय है।
आपकी लिखी हर पंक्ति से हमने सिखा ,
दो चार शब्द , दो चार बातें।
असीमित ज्ञान भरा है आपके कविताओं में ।
लिखते रहिये ॥
~यज्ञ
तिमिर-स्तर कर पार ,मनमय-कोष भास्वर
दीप्तिमय हर शब्द,ज्योतित पंक्तियाँ धर ,
कवि,
तुम्हारे छंद, आरण्यक स्वरों में
उदित-ऊषाकाल के ऊर्जिल किरण-शर!
एक युग तक जीना
समेटे हुए आक्रोश
कल्पों तक सुनना
हितैषी क्षमा के गीत
क्या खूब पंक्तियाँ हैं....बोहोत खूबसूरत
copy paste bhi to nahin hota aapke blog se ;) aap itne kamaal ke thoughts lekar aate ho jaane kahan se, kaash ke aap kabhi aisa hi kuch urdu mein bhi likhte...maza aa jaata. aapki hindi mujhe ab bhi classroom mein le jaati hai...teacher ji ki yaad aa jaati hai.... ;)
किन्तु भू पर रह,
यह कर पाने को।
चढ़ना ही नहीं अपितु,
देग में खौलना होगा।
बहुत अच्छी रचना ..बहुत कुछ करने को कह दिया ...
"उठा कर महाबली भुजाएँ,
तड़ित से तेज गरजना होगा।
रख देने होंगे अश्वगंधा पुहुप परे,
भीषण आयुधों को धरना होगा।"
कोमल भावो से सजी ओजस्वी प्रेरणादायक, प्रस्तुति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
आपकी रचनाएँ निःशब्द कर जाती हैं जगदीश जी .... अनूठे बिम्ब बनाते हैं आप ...
आपकी रचनाएँ निःशब्द कर जाती हैं जगदीश जी .... अनूठे बिम्ब बनाते हैं आप ...
दिगंबर जी,
शायद ये मेरे लिए नहीं था... हटा दूँ?
और शायद पिछला भी मेरे लिए नहीं ही रहा हो...???
बहुत सारे शब्दों का अर्थ यद्यपि नहीं जानता फ़िर भी दावे के साथ कह सकता हूं शुद्ध हिन्दी और संस्क्रित शब्दों से सुशोभित ऐसी ओज पूर्ण कविता बहुत कम ही लिखी जाती है। बहुत बहुत बधाई ।
प्रेरक...
तुम कह देना -
मेरे सुर सारंगी में ही ठीक बजते हैं।
पुरनियों ने कहा है - सारंगी मनुष्य के स्वर के सबसे निकट है।
और
मेरी गढ़न में वे कुछ अधिक ही हैं
मुझे इस प्रकार का मनुष्य होने पर गर्व है।
रश्मि जी का जवाब गिरिजेश जी ने दे दिया .....
आपको सारंगी मुबारक ......
दुआ है ये सारंगी हूँ ही बजती रहे .....!!
कविता कठिन जरूर है पर मनोहारी भी उतनी ही है
आप सभी का बहुत बहुत आभार जो इतना स्नेह दिया, अनुपम शब्द दिए आपने.
इतना योग्य कहाँ मैं...?
आभार फिर से.
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ,अच्छी रचना , बधाई ......
ऐसे भाव.... पढ़कर बहुत अच्छा लग रहा है.
Post a Comment