सन्देश.....


मंदिर के जीने,
की कतारें.
मस्जिद की,
सीढ़ी सी हैं.

रजिया है,
मेरी मुनिया सी.
कैफ की बात,
जिगरी सी है.

मेरे अब्बा,
अकरम के पिताजी.
एक ही शेविंग,
क्रीम लगाते हैं.

रुकुह अता करते,
हैं राम को.
मौला को शीश,
नवाते हैं.

अरुणा आपा,
नर्गिस दीदी.
दोनों का कालेज,
एक ही है.

चार साल से,
बी ए में हैं.
दोनों का नालेज,
एक ही है.

मेरी अम्मी,
सलमा मौसी.
दोनों की रसोई,
जलवा है.

यहाँ पकौडे,
छाने माँ ने.
मौसी ने बनाया,
हलवा है.

मुसलमान का,
मतलब क्या है.
और हिन्दू का,
धर्म है क्या.

इनबातों में,
क्या रक्खा है.
बेफजूल का,
मर्म है क्या.

अश्क चार जब,
मिलें अश्रु को.
आनंद हाथ दे,
जिस रोज लुत्फ़ को.

वो इक पल है,
सौ युग जैसा.
वरना सदियों,
जीवन क्या है.

0 टिप्पणियाँ: