वो जो धीरे से,
आ जाते थे तुम.
पीछे से पलक ढाँपने,
अब क्यूँ नहीं आते.
वो जो कहा करते थे,
बातें अपने दोस्तों की.
जिनके नाम तक नहीं जानती,
अब क्यूँ नहीं सुनाते.
सब कुछ ही तो ठीक था,
यों ठीक अब भी है.
पर मैं भी ठीक हूँ,
ये पूछ क्यूँ नहीं जाते.
कैसे बुनती हूँ मैं फूल,
फिरनी बनाने की विधि में,
अब भी पारंगत नहीं मैं,
पर क्यूँ छेड़ नहीं जाते.
कभी मैं ही थाम लूँ,
तुम्हे देखने भर को दो पल.
"काब वेब में उलझा हूँ "
कह के ठहर नहीं पाते.
पहले तो न था ये,
"काब वेब" इतना जटिल.
कह ही डालो मुझे "काब",
सच क्यूँ कह नहीं जाते.
चलो अब मैं निकलती हूँ,
तुम्हारी यादें डूबोने को.
कहीं तो मिल ही जाएगा,
मुझे भी बरमुडा ट्राईएंगल.
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