ज़रा मिटटी फटती है,
कुछ कांटे चुभते हैं।
माली का पसीना बहता है,
तब जा के कहीं,
कोई फूल खिलता है।
जलन होती है धूप में,
पर होठों पर मुस्कान और,
दिल को सुकून मिलता है।
राह चलते सुबह,
हाथ फेरने से किसी,
गरीब बच्चे के सर,
कुछ जाता नहीं अपना,
वो जरा खिलखिलाता है,
दिल को सुकून मिलता है।
बसों में सीट,
मिल ही जाती है,
पर किसी वृद्ध महिला को,
सीट देने पर।
जब पढ़तीं हैं वो दुआ,
चमक जाती हैं आखें,
दिल को सुकून मिलता है।
बिल्ली के रास्ता,
काट देने पर जब।
खड़ी हो जाती है,
लड़की कोई सरेराह।
उसके सामने से,
गुजर जाने पर।
मरता नहीं मैं बल्कि ,
उसकी आँखों में,
बहन सा प्यार पलता है.
हर रोम पढता है दुआ,
दिल को सुकून मिलता है.
देर हो जाती है,
जब दफ्तर से आते।
और राह पूछते मिलते हैं,
दक्षिण भारतीय सज्जन कोई.
पांच मील और घूमता हूँ,
उन्हें घर पहुँचने को.
क्या हुआ के खुद का दरवाजा,
ज़रा देर से खुलता है.
दिल को सुकून मिलता है.
ढाबे पर कभी लड़का,
गिरा देता है दाल।
"सरदार दाल बड़ी अच्छी है,
एक और भिजवाओ"
कहता हूँ तो लड़का,
कमल के फूल सा खिलता है।
दिल को सुकून मिलता है.
जब कभी अपना कोई,
सूना देता है जली-कटी।
सुन लेता हूँ गीता की तरह,
भले ही वो जीतता है।
मैं हार जाता हूँ पर,
जवाब नहीं देने पर.
दिल को सुकून मिलता है.
1 टिप्पणियाँ:
yeh bhi mast hai....great dude!!!!
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