माना विजन पथ पर बहुत तुम चले हो,
महि के ही क्रोड़, अनिकेत तुम रहे हो।
पर अभी स्थापित किया है प्रथम केतन,
अभी तो पूरा भुवन ही नापना है।
सायास हैं जो आँजे सारे भित्तिचित्र,
स्वस्ति से पगे अरे विनम्र विप्र!
स्निग्ध छोह की इयत्ता मगर,
अजस्र रहे, तुम्हे ही ये भी देखना है।
शोण बहता है शिराओं में तुम्हारी,
द्युतमान तुमसे कम तनिक है अंशुमाली।
विरूपण व्यतिक्रम से तुम परे हो,
किन्तु विकर्षण को अभी भी रोकना है।
कुसुम्भ कुसुम है तृण-हर्म्य में उगाये,
अनुदिन धिपिन आविष्ट कलेवर बनाये।
किन्तु कई विपथ अभी भी छूटते हैं,
अभी उनको शस्य करने जोतना है।
कौन सा दिव है, प्रतिहत ना हुए हो?
सच बताना क्या चिलक में ना जिये हो?
यह तो प्रघट्टक के आवर्तन का नियम है,
आगे कुत्सा की शिलाओं को भेदना है।
गह्वरों-विवरों से सकुशल निकल आए,
उत्ताप के तुरंग, विरति वल्गा लगाये।
किन्तु गेह में हैं खटरागी द्विधायें,
उनकी लोल उर्मियों से खेलना है।
तुमने लांघी पर्वतों की शत वनाली,
रुके न, निष्कंप, एक जऋम्भा न डाली।
किन्तु अभी ऐसे दिन भी देखने हैं,
जिनके स्वप्न की भी सबको वर्जना है।
कौन पीयूष सोता तुमने ना बहाया?
कौन सा निनाद ऐसा जो न गाया?
अवहित्था ही है किन्तु योषिता तुम्हारी,
और न इसमें तनिक भी अतिरंजना है।
ठीक तुम अमर्त्य नहीं, जंगली किरात सही,
किन्तु जग प्रहसन उठाये, तुम कोई कन्दुक नहीं।
साँझ की जो श्याम होती यवनिका है,
उसे तुम्हारे बाणों से ही बिंधना है।
भूल चलो जो किये अब तक हैं अर्जित,
इतिवृत्तों को कितने दिवस पोंछना है?
उदीप में अब, हे मनु निर्बंध बढ़ो,
कूल तक नहीं कभी भी लौटना है।
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विजन= एकांत
क्रोड़= गोद
केतन= ध्वज
विप्र= वेदज्ञाता
इयत्ता= मात्रा/माप
छोह= ममता/दया
अज्रस= निरंतर प्रवाहित
शोण= लाल/ रक्त
अंशुमाली= सूर्य
द्युतमान= तेजस्वी
तृण-हर्म्य= कुटी
धिपिन= उत्साहजनक
कुत्सा= निंदा
वल्गा= लगाम
जऋम्भा= जम्हाई
अवहित्था = भाव छुपाना
योषिता= स्त्री
कन्दुक= गेंद
इतिवृत्त= इतिहास वृत्तांत
उदीप= बाढ़
कूल= तट
19 टिप्पणियाँ:
जियो यशस्वी !
निस्संदेह यह प्रथम केतन है… अभी तो समूचा ब्रह्मांड तुम्हारी कीर्ति से गूँजेगा। जिजिविषा और जीवटता से भरा वीरोचित आह्वान सुन कर मन पुलकित हुआ!
तुमने लांघी पर्वतों की शत वनाली,
रुके न, निष्कंप, एक जऋम्भा न डाली।
किन्तु अभी ऐसे दिन भी देखने हैं,
जिनके स्वप्न की भी सबको वर्जना है।
waah, maa saraswati hi hain kalam mein, vichaaron mein
adbhut shabd chamtkaar.
chamtkar ko namaskaar.
...Apse aur bhii siikhna hai.
ya'allah.......!!!!
khuda kasam dost, tunhe padhne se pehle main sochti thi mujhe hindi aati hai :)
samajh to mujhe hamesha hi thodi kam aati hain, is baar thodi aur mushkil lagi. aur waqt lekar padhungi.....par jitni ab tak samajh aayi...bohot acchi lagi.
accha sach bataao...gussa to nahin aata mere anpadh comments padhke....aata ho to please maaf karna yaara
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (12.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
aesi bhtrin post to sirf aaphi ki qlm se likhi ja skti he bdhaayi ho. akhtar khan akela kota rajsthaan
आज पहला पैरा तीन चार बार पढ़ना पड़ा, तब तारतम्य बैठा, और ज्यूं-ज्यूँ आगे बढ़ा - त्यूँ त्यूँ नीचे नैन! तुम लिख जाते हो और हम पढ़ने में भी इतने सैलेक्टिव:))
ऐसे आह्वान सुनकर किसकी शिराओं में खून की रफ़्तार नहीं तेज होगी, बोलो तो? बसंत वाला आश्वासन पूरा किया तुमने, आगे और फ़रमाईशें झेलने का रास्ता खोल दिया है।
अब एक बात, पोस्ट से अलग - गावस्कर के बारे में सुना है कि सौ के आंकड़े को छूने के बाद फ़िर से गार्ड लेते थे। जो हुआ सो हुआ, नया लक्ष्य, नई मंजिल और नया सफ़र। You need not to take guards afresh, just keep it up. We people are here to applaud.
well done, Avi.
कमाल लिखते हो !
बहुत जोशीली कविता है आपकी
सच है आगे बढना ही तो जिन्दगी है
शुभकामनाये
माना विजन पथ पर बहुत तुम चले हो,
महि के ही क्रोड़, अनिकेत तुम रहे हो।
पर अभी स्थापित किया है प्रथम केतन,
अभी तो पूरा भुवन ही नापना है।
उत्कृष्ठ लेखन है -
बधाई
है अजान राह,
अब हम बढ़ रहे,
सीखने की चाह,
अब हम लड़ रहे।
इतने अप्रचलित और नये शब्द बहुत दिनों आद एक साथ देखा, कुछ को तो चूक ही मान रहा था.
अद्भुत। कठिन शब्दों के अर्थ देकर आपने मुझ पर बहुत उपकार किया अन्यथा इस सुंदर रचना को समझने से वंचित रह जाता।
बहुत सुन्दर शब्दचित्र उकेरा है..
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
एक-एक शब्द ओजपूर्ण ..... बहुत सुन्दर...
बहुत कठिन चुनौतियों को ले कर चलने वाला अदम्य आवाहन किया है आपने .जिसे सुन कर देवत्व और पशुत्व के मध्य स्थित यह मनु-पुत्र
अपनी सामर्थ्य तोलेगा ज़रूर .और तब पौरुष से दीप्त ,अब तक की उपलब्धियाँ पीछे छोड़ आगे बढ़ने को सन्नद्ध होगा ही !
चरम आशावादिता का यह स्वर सदा ऊर्जस्वित रहे !
मेरे लिये तो यह स्थल हमेशा से पाठशाला सा रहा है.. जब यहाँ ए लौटता हूम कुछ लेकर लौटता हूँ, जब कभी अपने लिखे पर इतराने लगता हूँ, यहाँ आकर ख़ुद को छोटा पाता हूँ.
अद्भुत आह्वान है.. अभी तो पूरा भुवन नापना है.. आपके जीवन के लिये हमारी भी आपसे यही अपेक्षाएँ हैं और शुभकामनाएँ भी!!
offo.....ur crazy buddy....!
i was just kidding.....aadat daal lo aisi ulti seedhi baaton ki....mere comments aise hi hote hain...they r a joke...just to mess with ur nerves ;)
jus chill !
आप सभी का हृदय से आभार
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