कविताएँ सुनी जा सकती हैं,
अर्गलाहीन पीपल के,
पुराने कोटर पर,
जहाँ रहा करती हैं,
नन्ही त्रिरेखीय गिलहरियाँ।
जेठ मास के सूरज से,
झुलस चुकी बाँबियों पर,
जो पिछले सप्ताहांत ही,
खाली की जा चुकी हैं।
कविताएँ लिखी जा सकती हैं,
अनिमेष ताकते दिनकर पर,
मान सुथराई हंता,
या ओस का पुण्य पिता,
अपनी अपनी तथा-यथावश।
विहस उठाने में सक्षम है,
जो कोई भी मृदु-कल्पना,
शशि पर, उसकी कलाओं पर,
तारकों की उद्दाम विभाओं पर।
कविताएँ गुनी जा सकती हैं,
गर्दन मरोड़ जुगाली करती,
दूधविहिना बिलाई भैस पर।
सँध से छन कर आती,
पूस को भरमाती हल्की ताप पर।
उस अगरू सुगंधि पर जो,
करती है विश्वास बलवती,
सौ युगों बाद खोद कर निकाले गए,
विग्रह की स्मिता पर।
कविताएँ कही जा सकती हैं,
गुलमर्ग की सफ़ेद औ लाल,
घाटियों के निरूपम सौंदर्य पर।
देवदार पर अनी के जैसे जुड़े,
तुषार के बिनौलों पर।
रोहू-काट्ला चुनते गाते,
हुगली के मछुआरों पर।
ताम्बई कड़े पहने झुलसती,
थार की तपती बरौनियों पर।
कविताएँ बुनी जा सकती हैं,
प्रशांत महासागर के,
सबसे गहरे तलौंछ पर,
जो सटकाए बैठा है,
भुवन जितने ही रहस्य।
आकाशगंगाओं , राहुओं, केतुओं,
राशियों-नक्षत्र दलों पर।
अगणित विधुर उत्कोच दबाये,
काल के प्रहरों पर।
किन्तु अब तक निर्वाक बैठे,
अश्वत्थ विटप पर प्रच्छन्न,
रण गुंजित-कलित होने वाले,
स्वायत्त शब्द सभी बंध तोड़,
फुनगी से बोल उठते हैं सहसा ही।
यहाँ भी ठहरोगे न मित्र?
वचन दो।
==============
अगरू= एक प्रकार की लकड़ी, जो अगरबत्ती बनाये के लिए प्रयुक्त होती है
विग्रह= देवप्रतिमा
सुथराई= ओस
रोहू-काट्ला= नदी की मछलियों के प्रकार
तलौंछ= द्रव-पात्र के तल में बैठा भारी अंश
भुवन= ब्रह्माण्ड
उत्कोच= रिश्वत
अश्वत्थ= पीपल
29 टिप्पणियाँ:
सुन्दर और सार्थक कविता ! जयशंकर प्रसाद की कविता की याद आ गई..
avinaash itni sashakt aur paripkv abhivyakti..bahut baar padha...kahin kahin kathinai hui..par daad deti hoon aapki.aapki shalili juda hai!
नन्ही त्रिरेखीय गिलहरियाँ।
वाह ! त्रिरेखीय गिलहरियाँ.....नन्ही बछिया के कान के जैसे पत्ते (या इसका उल्टा...मुझे ठीक ठीक याद नहीं...)..हम्म...ये सब उपमाएं..तू ही लिख सकता है..
दिनकर
ओस
शशि
तारे ....
..:)
कोई अँधेरे का साथी..कोई उजाले का सखा...कितने अलग अलग पर..कितने जुड़े हुए एक दुसरे से........ये पढ़ते पढ़ते ही एहसास हुआ....एक के बिना दूजे का वजूद नहीं...
गर्दन मरोड़ जुगाली करती,
दूधविहिना बिलाई भैस पर।
...:)...ये भी मेरी fav हुई...बछिया के कान की तरह :)
चारों दिशायें भी माप लीं.....:)
घाटियों के निरूपम सौंदर्य पर।
देवदार पर अनी के जैसे जुड़े,
तुषार के बिनौलों पर।
रोहू-काट्ला चुनते गाते,
हुगली के मछुआरों पर।
ताम्बई कड़े पहले झुलसती,
थार की तपती बरौनियों पर।
प्रशांत महासागर के,
सबसे गहरे तलौंछ पर,
जो सटकाए बैठा है,
भुवन जितने ही रहस्य।
आकाशगंगाओं , राहुओं, केतुओं,
राशियों-नक्षत्र दलों पर।
..हम्म..समुंदर की गहराई और नभ का विस्तार...
अगणित विधुर उत्कोच दबाये,
काल के प्रहरों पर।
उत्कोच यानी,,?? :( क्या शानदार पंक्ति है...मगर मेरी अज्ञानता..मैं इसका आनंद भी नहीं ले सकती.......जब तक तू अर्थ न बताये तब तक..:(
किन्तु अब तक निर्वाक बैठे,
अश्वत्थ विटप पर प्रच्छन्न,
रण गुंजित-कलित होने वाले,
स्वायत्त शब्द सभी बंध तोड़,
फुनगी से बोल उठते हैं सहसा ही,
यहाँ भी ठहरोगे न मित्र?
वचन दो।
विटप...यानी वृक्ष ना..?
हम्म..पीपल से शुरू..पीपल पर समापन.....:)
(इस वचन पर भी तो लिखा जा सकता है बहुत कुछ..)
बहुत ही निर्मल कविता....कभी कभी लगता है..लिखने को विषय ही नहीं......और तूने अनगिनत विषय..प्रेरणाएं..गिना डालीं। मेरी tubular vision एकदम हतप्रभ है..तेरी कविता पढ़कर...:)
वाकई..प्रकृति में ढेरों विषय व्याप्त हैं...जिन पर कवितायें कहीं जा सकतीं हैं.....ठीक प्रकृति में बिखरे अलग अलग हरे रंगों की तरह......
===============
यदि सच में शब्द गिरना चाहें तो ही गिरायें, हरसिंगार स्वयं टपकें तो भले.... सुझाव संबल देंगे, प्रशंसा रोटी, निंदा नमक...
केवल गिनती बढ़ाना सरोकार नहीं, विचारों से सुरभित होना ही ध्येय है..
ye bhi badhiyaan hain ekdum...maine aaj hi dkehe ye shabd......:)
और कवितायें लिखी जा सकती है कि किन विषयों पर कविता लिखी जा सकती है।
बहुत ही सुंदर रचना....दिल को छु गयी।
इस कविता को पढने के बाद यह अनुभूति हुई कि समस्त ब्रह्माण्ड के कण कण से कविता कि सरिता फूट निकली है!! सम्पूर्ण जगत कविता के नूपुर से गुंजायमान हो रहा है!!
जबजब यहाँ आता हूँ, स्वयम् के बौनेपन का भाव लिये लौटता हूँ.
अविनाश जी, साधुवाद!
किन्तु अब तक निर्वाक बैठे,
अश्वत्थ विटप पर प्रच्छन्न,
रण गुंजित-कलित होने वाले,
स्वायत्त शब्द सभी बंध तोड़,
फुनगी से बोल उठते हैं सहसा ही,
यहाँ भी ठहरोगे न मित्र?
वचन दो।
सार्थक भाव लिए सुन्दर शब्दों से सजी कविता
tumne to bahut saare vishay de diye jo achhoote hain mujhse... un par bhi kavitayen likhi jayengi... bahut acchi hai.... tumhari hindi se klisht se klishttam hoti ja rahi hai... bahut si pyari upmaayen padhne ko mileen...likhte raho ...
muaafi bhaayi...:)
tune utkoch ka arth likhaa hua hai...woh yun hi duabara kavitaa padhne aayi ye wali...so abhi dekhaa...
ab nayi takleef ho gayi...:'(
अगणित विधुर उत्कोच दबाये,
काल के प्रहरों पर।
utkosh yaani rishwat likha hai tune.....ab is pankti ka arth samajho bhaiyya...:(
is stanza ki baaqi lines se iska saamanjasya nahin samajh aa saka..:(:(
शब्द चमत्कार मुग्ध कर देती है। आह! कितना कुछ सीखना बाकी है अभी।...बहुत खूब।
आपकी कविता अलग सी होती है .....बहुत सुन्दर
वाह भए वाह....कविता के कितने विषय बताये आपने....कुछ काले कुछ सफ़ेद कुछ रंगहीन.
हर एक परमाणु में कविता का संग्रह....
कवि को रवि से भी आगे यूँ ही तो नहीं माना गया, कहाँ कहाँ नहीं कह,लिख,बुन,गुन सकता कवितायें? लेकिन वो दृष्टि ही सबको मिल जाती तो हर कोई कवि बन जाता।
बहुत शानदार।
सबसे ज्यादा सार्थक शिर्षक लगा.....आभार..
शब्द से उत्पन्न विश्व फिर किन्हीं शब्दों में लौट जाना चाहता हो जैसे ,
हरेक को ऐसे शब्द की खोज है जो उनके अर्थ को धारण कर सके ,
और यह संभव भी है ,आप जैसे समर्थ कवियों के रहते !
सुन्दर रचना के लिए बधाई !
बिना ठहरे ऐसी कविता ? बहुत सुन्दर रचना
कविता सुनना ,लिखना ,गुनना, बुनना करते ही हैं लोग पर निर्वाक् की पुकार सुन लेना हरेक के वश में कहाँ .
वचन तो दे ही आए होंगे!
hmmmmm......detail mein likhna chahti thi...par aap copy paste ni karne dete ;)
gilahriyaan to bas...choooo chweeeet :)
prashant mahasagar par sachmuch kavita likhni chahiye....
kyun kahun ki bohot sundar kavita hai....zarurat kya hai...aur jab zarurat nahin hai to why shud i spend my lazy saturday morning typing ;)
take care buddy.....
आपके ब्लॉग पर ऐसा कोई गीत कोई कविता नहीं थी जिसे मैंने पढ़ा और आनंदित न हुआ हूँ. हिंदी के शब्द ज्ञान का कोष सा है ये ब्लॉग. निरंतर लिखते रहिये कि निरंतर प्रतीक्षा बनी रहती है.
नमस्कार........आपकी रचना वाकई तारीफ के काबिल है
मैं ब्लॉग जगत में नया हूँ, कृपया मेरा मार्गदर्शन करें......
http://harish-joshi.blogspot.com/
आभार.
कविता पर इतनी अच्छी कविता!
सार्थक अभिव्यक्ति :)
बधाई नहीं ....
अपनी क्षणिकायें भेजिए ...
देख चुकी हूँ आपका कमाल ....
रचना हर बार की तरह बेजोड़ .....
बहुत ही सुन्दर व सर्थक रचना , बधाई।
देरी से आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूं. ऐसा लगा मानो कविता की असंख्य रश्मियां अनायास ही कौंध उठी हो.... शब्दातीत. आभार.
आप को वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
सादर,
डोरोथी.
आप सभी का आभार, धन्यवाद।
ab to thaherna hi padega.
वाह! क्या खुबसूरत और सार्थक रचना है...
सादर बधाई..
bahut bhaavpurn rachna, badhai.
सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति. कमाल का शब्द सँयोजन
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
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