करुणा के घट स्मितित मनोहर,
अगणित वर्षों से ढुलकाना।
रज में डूबे बकुल-फूल को,
नित प्रात विरज करके जाना।
भादो के जाते घन दल से,
कुछ अंजन ले कर आना।
मेघों के निर्घोष से चुन कर,
जल बूँद-बूँद कर छिटकाना।
ये तो कोई रिपुदल का,
विनियम आखेट नहीं है।
फिर क्यों नित्य कहा करते हो,
किंचित प्रेम नहीं है।
सिकते सूखे से कपोल पर,
मृदु आसव का लेप लगाना।
पाटल के सूखे विटपों पर,
चन्दन की सी गंध सजाना।
अरूप नेह की लता विहंगम,
श्वास पकड़ कर चढ़ जाना।
बन के हास निरुपम हिय का,
दिव मीलित, सुभीता कर जाना।
ये तो किन्ही तरुण गीतों के,
अनी की टेर नहीं है।
फिर क्यों नित्य कहा करते हो,
किंचित प्रेम नहीं है।
तूलिका से बातें कर कर के,
दूर यवनिका तक लिख आना।
निर्बंध अनल अभिसार बना कर,
रंगों की थाती बिखराना।
सीपी के उच्छ्वास बुलबुले,
चुनना, चुनते ही जाना।
मुक्ताफल के अनुनादों से,
अनुराग खींच कर ले आना।
ये तो किसी पूर्वजन्म के,
वलय का फेर नहीं है।
फिर क्यों नित्य कहा करते हो,
किंचित प्रेम नहीं है।
पूजा की थाली छू करके,
सब खील, बताशे कर जाना।
और स्मृति के हर एक कण पर,
रिद्धिमा की रोली बिखराना।
लोचन के कोमल अभ्रों का,
तोय निलय पर टपकाना।
स्नेह से पूरित वर्ण गूंथना,
गीत मृदुल गुनते जाना।
यह सब मात्र मेरे स्वप्नों का,
कोरा संकेत नहीं है।
फिर क्यों नित्य कहा करते हो,
किंचित प्रेम नहीं है।
32 टिप्पणियाँ:
लाजवाब...प्रशंशा के लिए उपयुक्त कद्दावर शब्द कहीं से मिल गए तो दुबारा आता हूँ...अभी
मेरी डिक्शनरी के सारे शब्द तो बौने लग रहे हैं...
सिकते सूखे से कपोल पर,
मृदु आसव का लेप लगाना।
पाटल के सूखे विटपों पर,
चन्दन की सी गंध सजाना।
kalam ko kis ras me duboya hai
इंतज़ार सार्थक रहा एक बार फ़िर से।
एक और मास्टरपीस, अविनाश।
"फिर क्यों नित्य कहा फिरते हो,
किंचित प्रेम नहीं है।"
प्रेम में शायद मौन ही अकेला है जो सच बोलता है। जो शब्दों के माध्यम से बोला जाता है वो सच नहीं होता, ज्यादा से ज्यादा 'a halftold truth' हो सकता है।
बहुत अच्छी कविता लगी मित्र, आभार दूं तो रख लोगे न?
आती हूँ हर बार...
पढ़ती हूँ हर बार..
और बस शब्दों के भवँर जाल में...
फ़ँसती हूँ हर बार...
फ़िर भी हर बार लगता है ...
आना है फ़िर एक बार...
आती रहूँगी बार बार...
शायद ये प्रेम ही तो है...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
आप सभी का धन्यवाद
@संजय जी,
बदलाव कर दिया, जो देंगे सब सहर्ष ले लूँगा. :)
ekdam man ko pulkit karnewali kavita hai.
कविता पढ़कर आनंदित हुआ था, जवाब पढ़कर और भी ज्यादा मुदित-आनंदित।
आभार
भाव जितना मधुर अभिव्यक्ति उतनी ही मनोरम.
सौन्दर्य का ही विस्तार !
बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...
आपके लेखन ने इसे जानदार और शानदार बना दिया है....
Ati Sundar.Saraahneey post...
वादों, सुवादों, कुवादों, खलवादों आदि आदि से ग्रस्त प्रिंट माध्यम वाली कविताओं में ऐसा भाव और शब्द संयोजन अब दुर्लभ है।
भादों के जाते घन दल से
कुछ अनजान कर ले आना
मेघों के निर्घोष से चुन कर
जल बूँद बूँद कर छिटकाना
awww...beauuuutifful.....!
सीपी के उच्छ्वास बुलबुले.......
lovely expression
पूजा की थाली छूकरके
सब खील बताशे कर जाना......
hmmm.....shaitaani soojh rahi hai... ;)
fir kyun nitya kaha karte ho
kinchit prem nahin hai
bohot bohot pyaari kavita hai dost....for once mujhe kaafi samajh mein aayi, lovely :)
its beautiful man... Outstanding.. Bahut komal aur nischal se bhaav samete hain is kavita mein.. Jiyo avi
सुन्दर भावाव्यक्ति।
आपकी पोस्ट की चर्चा कल (18-12-2010 ) शनिवार के चर्चा मंच पर भी है ...अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव दे कर मार्गदर्शन करें ...आभार .
http://charchamanch.uchcharan.com/
भादों के जाते घन दल से
कुछ अनजान कर ले आना
मेघों के निर्घोष से चुन कर
जल बूँद बूँद कर छिटकाना
yah panktiyan bahut arth poorn hai
rachna achhi lagi ,badhai
मन की उन्मुक्त अभिव्यक्ति।
सुन्दर अभिव्यक्ति!
sach kahu.......to aapki ye kavita itni marmsparshi hai..........jo gujre pyaar ke palo ko yaad dilati.........behad sanwedanshil.............bhut hi sundar likhte hai aap.....badhai ho
hamesha ki tarah...asaadharan
तुम्हारी कविता को पढ़ कर कुछ कहने के लिए शब्द बौने हो जाते हैं ....
बस इस रचना को बार बार पढने में ही रस है कुछ इस पर लिखने में नहीं ...
विस्तृत सौंदर्य ही दिख रहा है ...
शुभकामनायें ..
adbhut shabdon se saji rachna...bahut sundar...
aapki is rachna par to comment karna main gustakhi hi samjhta hoon. main to kuchh bhi nahin is par to shayad aaj "Harivansh Rai" ji bhi hote to comment karne se pahle 100 baar sochte
सच कहूँ......
न जाने कितने अरसे बाद हिन्दी के प्रांजल शब्दों को पढने का सुअवसर मिला है...
अकाल ही तो पड़ा हुआ है इस तरह के लेखन का...
मन कितना आह्लादित है आपका यह उत्कृष्ट लेखन स्तर देख...मैं शब्दों में कह नहीं सकती...
अभी तो बस दुआएं ही लीजिये...ईश्वर आपकी लेखनी को दिन दूनी रात चौगुनी समृद्धि दें...
ऐसे ही सार्थक लिखते रहें और हिंदी साहित्य को समृद्ध करते रहें...
अनंत शुभकामनाएं....
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति। आभार|
क्रिसमस की शांति उल्लास और मेलप्रेम के
आशीषमय उजास से
आलोकित हो जीवन की हर दिशा
क्रिसमस के आनंद से सुवासित हो
जीवन का हर पथ.
आपको सपरिवार क्रिसमस की ढेरों शुभ कामनाएं
सादर
डोरोथी
नाचे मन मोरा मगन धिकदा धीकी धीकी . मस्त और प्रवाहमय .
ये तो कोई रिपुदल का,
विनियम आखेट नहीं है।
फिर क्यों नित्य कहा करते हो,
किंचित प्रेम नहीं है।
क्या बात है !
रंजना जी से सहमत हूं कि ऐसे शब्द और ऐसी कविता का बहुत दिनों बाद रसास्वादन कर पाई ,कुछ शब्दों के लिये तो डिक्शनरी देखनी पड़ी ,
बहुत बढ़िया !
बधाई !
सिकते सूखे से कपोल पर,
मृदु आसव का लेप लगाना।
पाटल के सूखे विटपों पर,
चन्दन की सी गंध सजाना।
कई भूले-बिसरे शब्दों से साक्षात्कार हुआ....
सुन्दर भाव -सम्प्रेषण
आप सभी का बहुत आभार!
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