मत खोलना ना,
आज किवाड़ अपने।
तुम्हारी तो भोली है,
नन्ही सी छागली।
तुम तो बाँध दोगी,
हिलते खूंटे से उसे।
वो सयानी मान,
भी जायेगी चुपचाप।
पर मेरा क्या होगा,
ये भी तो सोचो?
मैं तो देखता ही,
रह जाऊँगा ना।
तुम्हारी दरक पीली,
फहरती चुन्नी को।
और मेरा निपट,
नालायाक बछडा।
भाग जाएगा फिर,
अपनी अम्मा तक।
फिर नहीं दुह ,
पायेंगे मामा।
क्या पाओगी तुम,
मुझे यूँ सता के?
माना ललक है,
तुम्हे देखने की।
पर कुछ बातें,
ना बढें तो अच्छा।
इतना तो समझती,
हो तुम भी बावली।
तैरता नहीं धेला,
नदी में घुलता है।
यूँ हक़ नहीं मुझे,
पर अरज सुनो।
मत खोलना ना,
आ़ज किवाड़ अपने.....
0 टिप्पणियाँ:
Post a Comment