युद्ध तिमिर से....

हे बलशाली तिमिर के योद्धा,
इतरा ना श्रिन्गिभाल पर।
सात अरुण दौदिप्य हैं मेरी,
जिजीविषा के कपाल पर।

माना तेरी रात बड़ी है,
विजय तेरे ही साथ खड़ी है।
किन्तु मेरी मुट्ठी अभी भी,
पावक सम तलवार जडी है।

या तो शीश तेरा बांधूंगा,
इर्ष्या-ठूंठ की डाल पर।
या फिर मेरा लहू बहेगा,
ना रोएगी धरा इस लाल पर।

शत सहस्त्र की सेना माना,
हर क्षण मेरी घात खड़ी है।
किन्तु मैं हूँ बाण-खिलाडी,
मैंने गिनती नहीं पढ़ी है।

मुझे डरा मत रात के राजा,
लोभ दंभ की बात कर।
प्रपात नहीं रुका करते हैं,
पाषाणों के आघात पर।

बुला ले कूकर-शृगाल सब,
निर्णय की ये ब्रम्ह घडी है।
नहीं कोई भी एक बचेगा,
शार्दूल ने शपथ धरी है.

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