एक बार कहो....

बन जाऊँगा,
बरगद का पेड़।
नहीं आने दूंगा ,
सूर्य की तपिश।
रोक लूंगा वर्षा भी।
भय न हो हवा का,
तान दूंगा लताएं।
डरती हो,
जंगली जानवरों से?
भय मेरे साथ भी?
चिंतित न हो,
स्वयं को खा लूंगा,
एक कोटर बनाऊंगा,
वक्ष पर ही।
रह लेना वहीँ
भूख ???
अरे मेरे अमर,
फल खा लेना।
वरना पकड़ लूँगा,
किसी गिलहरी को।
वो बो देगी आम,
एक भुजा पर मेरी।
आम तो पसंद हैं ना?
सर्दी की चिंता,
मत करो तुम।
तुम चिंतित,
अच्छी नहीं लगती
तुम्हारी तपिश को,
मैं अस्थियाँ जलाउगा।
तुम बस एक बार,
ह्रदय से कहो तो.

1 टिप्पणियाँ:

Rash....lost somewhere said...

Incredible..........ultimate....:))

bahut dino ke baad kuch padha aaj magar bahut achha padha,
jee bhar aaya.

keep it up.

Regards:
Rashmi.