आगत स्वर..



कितने दिव चले मित्र?
कौन-कौन सी दिशायें नाप,
कौन से दुर्धर विजन पथ माप,
यायावर, लौटे हो इस बार?

तुम्हारे पीछे मैं सहेजता रहा,
तलवों से बन आए गड्ढे।
देखता रहा गूलर के फल।
उनमे चोंच मारते प्रवासी पक्षी।

तुम्हारी प्रतीक्षा में ऊब,
तुम्हारे कौशल विमुग्ध,
छानता रहा सूर्य-शशि,
ताल के तलौंछ में।

बुनता रहा टपकते हरे-पीले,
झरे-टूटे-छूटे पत्तों से शब्द,
सांगोपांग सत्वर तत्पर।

कि तुम लौटोगे बन पाणिनि,
और खींच दोगे उन्हें,
हर खांचे में।
बाँध दोगे हर यवनिका,
कस दोगे मूर्त-अमूर्त हठात,
प्रत्येक निकष पर।

तुम्हारे स्वर नहीं थे,
तो एक अकेला एकांत था,
मेघों के रीते निर्घोषों के बीच,
जो बजता था घनघोर, प्रचंड।

मंदिरों से उठने वाला,
धीमा सा मंत्रोच्चार,
आर्द्र रहा करता था,
ओस की बूँदों से अहर्निश।

तथापि मुकुलित पुहुप धरे,
अक्षरा आस लगाये निःस्व।
मैं करता रहा प्रतीक्षा,
तुम्हारे लौटने की।

कि उत्तर दिशा से लौटोगे तुम,
और होगी गुंजायमान ऋचाओं से,
समस्त धरित्री, सम्पूर्ण शाद्वल वन।

खुल जाएँगे बंध स्वेच्छया,
तुम्हारे श्री दर्शन से।
प्रत्यूष हो उठेगा चटख।
हर्षित उन्मुक्त रश्मिधर!

जो लौट आए हो मित्र!
तो स्वरों को दो आकार।
मौन को कर दो श्राप-मुक्त।
ऋतुओं को करने दो हर्षनाद,
प्रतीक्षा को अपना मोल दो।

पवन में ठीक इसी वेला,
अपने मधुप वर्ण घोल दो।
सब राग स्मिता पाएँ मित्र!
आज पुनः सभी छंद खोल दो।

19 टिप्पणियाँ:

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

इतने दिवस के पश्चात आपके काव्य के पाठन का सुख प्राप्त हुआ.. कृतार्थ हुए.. एक चिर प्रतीक्षा के उपरांत हमारी प्रतिक्रया इस कविता पर वही है जो भाव आपने व्यक्त किये हैं इस कविता में..
जो लौट आए हो मित्र!
तो स्वरों को दो आकार।
मौन को कर दो श्राप-मुक्त।
ऋतुओं को करने दो हर्षनाद,
प्रतीक्षा को अपना मोल दो।
प्राप्त हुआ मोल प्रतीक्षा का इस कविता के रूप में!!

Arvind Mishra said...

रहस्यानुभूति की अद्भुत कविता ....लगा जैसे सारा निसर्ग साक्षात हो गया हो !

sudha tiwari said...

अद्भुत...सुन्दर रचना.

S.N SHUKLA said...

सुन्दर रचना, खूबसूरत अंदाज़

Anupama Tripathi said...

श्राप मुक्त हुआ मौन....
गुंजित हुईं दिशाएं ...
हर्षनाद से ...
इतनी सुंदर प्रतीक्षा के कोमल एहसास पढ़ प्रसन्न हो गया मन ...
बहुत सुंदर रचना ....

संजय भास्‍कर said...

वाह अविनाश भाई
बहुत ही सुंदर .....प्रभावित करती बेहतरीन पंक्तियाँ ....
बेहद खूबसूरत आपकी लेखनी का बेसब्री से इंतज़ार रहता है, शब्दों से मन झंझावत से भर जाता है यही तो है कलम का जादू बधाई

रश्मि प्रभा... said...

तुम्हारी प्रतीक्षा में ऊब,
तुम्हारे कौशल विमुग्ध,
छानता रहा सूर्य-शशि,
ताल के तलौंछ में।
... tumhare shabd arjun kee pratyancha se nikle lakshybhedi vaan hote hain

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

कि तुम लौटोगे बन पाणिनि,
और खींच दोगे उन्हें,
हर खांचे में।
बाँध दोगे हर यवनिका,
कस दोगे मूर्त-अमूर्त हठात,
प्रत्येक निकष पर।

बहुत गहन भाव ... बहुत दिन बाद पढ़ा तुमको ...

सदा said...

बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

प्रतिभा सक्सेना said...

'लौट आए हो मित्र,
स्वरों को आकार मिला ,
मौन हुआ शाप-मुक्त!
प्रतीक्षा ने अपना मोल दिया -
ऋतुएं कर उठीं हर्षनाद '!
- यायावरी मौन के बाद ,शब्दित गहन-गंभीर भाव वितरित कर रहे हैं प्रसाद जो बाँध लाये हो अनुभूतिमय अनुभवों की अपनी गठरी में !

rashmi ravija said...

मंदिरों से उठने वाला,
धीमा सा मंत्रोच्चार,
आर्द्र रहा करता था,
ओस की बूँदों से अहर्निश।

खूबसूरत भाव लिए सुन्दर सी रचना...

प्रवीण पाण्डेय said...

अद्भुत, पढ़ पढ़कर सृजनात्मकता में गोता लगाया जा सकता है।

Dorothy said...

खूबसूरत शब्दचित्रों से सजी अनूठी प्रस्तुति. आभार.
सादर,
डोरोथी.

Yashwant R. B. Mathur said...

बेहतरीन कविता।

सादर

वीना श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर रचना...

Smart Indian said...

पूर्ण हुई प्रतीक्षा, आभार!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

अद्भुत शब्द प्रयोग।
मुझे लगता है एक आपका ही ब्लॉग पढ़ता हूँ जहां वाह! के अतिरक्त कुछ लिखने की क्षमता खत्म जान पड़ती है।

संजय @ मो सम कौन... said...

इतनी आतुरता से जिन स्वरों की प्रतीक्षा होती है, नि:संदेह दिव्य सुर-स्वर होंगे वह।
शुभाकांक्षा को शुभकामनायें।

Shikha Kaushik said...

bahut sundar abhivyakti .aabhar

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