हे तात!
आज के दिव ही,
ऐसे ही किसी क्षण,
पुण्य मन, उछाह भर,
ले आए थे तुम,
सैकत कण भर अंजुरी,
ध्रुवनंदा के किनारे से।
हे जननी!
नक्षत्रों के ठीक नीचे,
ऐसी ही किसी वेला,
ढुलका दिया था तुमने,
स्नेह-वात्सल्य से भरा,
प्रथम अजस्र पीयूष घट।
जीव, जीवन, अंश, दर्शन,
सब कार-अकार किये,
तुमसे ही प्राप्त अनुदिन।
विचर सकूँ किसी भी,
प्रकम्पित पथ भयहीन।
न हो सकूँ ग्लानिहत,
म्लान, अधीर, दम्भी।
और रहूँ सदैव प्रणत,
चरणों में अगाध श्रद्धा से।
रचयिता आज फिर से,
मुझे अजर वर यही दो।
17 टिप्पणियाँ:
विचर सकूँ किसी भी,
प्रकम्पित पथ भयहीन।
न हो सकूँ ग्लानिहत,
म्लान, अधीर, दम्भी।
और रहूँ सदैव प्रणत,
चरणों में अगाध श्रद्धा से।
सुन्दर भावों को गरिमापूर्ण शब्द दिए हैं ... सुन्दर रचना ..
आपकी सारी कविताओं की तरह सुंदर शब्दों से सुसज्जित दिल को छू लेने वाली प्रस्तुति.
शुभकामनाएँ.
आप हम सबके लिये भी यही वर मांग लीजिये।
जन्म दिन है क्या १८ जून को?
जनक-जननी के प्रति कैसी भावना रखते हो, अनुभव होता है और फ़िर फ़िर हृदय गर्व से और खुशी से भर जाता है। ये वरदान मिलते भी रहे होंगे और मिलेंगे भी, हमारे पास शुभकामनायें हैं, स्वीकार करो।
सुन्दर शबों के घालमेल में ही अटके है हम तो ...
रचयिता भी मुग्ध हुआ ही होगा ...
बहुत शुभकामनायें !
सुन्दर भाव ......
विचर सकूँ किसी भी,
प्रकम्पित पथ भयहीन।
न हो सकूँ ग्लानिहत,
म्लान, अधीर, दम्भी।
और रहूँ सदैव प्रणत,
चरणों में अगाध श्रद्धा से।
इसे से बढ़कर और दूसरी आकांक्षा भी क्या...
बहुत ही सारगर्भित कविता...
सुन्दर रचना रची है .. उस रचियता के नाम .. जिसने जीवन रचा ...
अद्भुत ! हम भी एकमात्र वर यही माँगते हैं.
aapki bhaavnaao ko naman.
sunder prabhaavotpadak rachna.
@जन्म दिन है क्या १८ जून को?
:)
देर से ही सही ,लेकिन आपके जन्म-दिवस हेतु
हार्दिक मंगल कामनायें ,और आपने जो अनुपम वर माँगा है ,उसकी संपूर्णता के लिए प्रभु से विनती ,कि इस उपयुक्त पात्र को उसका सही प्राप्य (यही वरदान)पूर्ण रूप से फलीभूत हो !
जय हो! मंगलमय हो! मुझे पता था कि अगर देर हो गयी तो संजय बाजी मार ले जायेंगे। वैसे देर का कारण जून प्रसन्न में है।
हार्दिक शुभकामनायें और आशीर्वाद!
विलम्ब से दे रही हूँ शुभकामना इस आशा के साथ की शुभ की कामना कभी पुरानी नहीं पड़ती...
आपकी यह पावन प्रार्थना आवश्य स्वीकार हो और ईश्वर यही वर हमें भी दें,यही आकांक्षा है...
ऐसी प्रार्थना स्वीकार ही होगी ।
इस स्नेह का आभार
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