अकाल.......

सूखे गाल,
चटक गए ताल।
जल बिन वृक्ष,
भये कंकाल।

नए प्रेतों की,
होगी भरती ।
हँसे ठठा कर,
सब बेताल।

नीचड गयी है,
पूरी धरती।
देखो आया,
घोर अकाल।

इन्द्र-वरुण में,
घपला घाल।
फिर सब बंजर,
चरम बवाल।

यज्ञ अनेको,
ठान भी डाले।
घृत-गंगाजल,
लोबान भी डाले।
किन्तु छूटे,
कहाँ जंजाल।
सूखी यमुना,
गंगा बेहाल।

गर्दभ का भी,
ब्याह रचाया।
सौ टोटक,
नौ झाम मचाया।
पर न उठायी,
एक कुदाल।

शीश नवाए,
वही मनुज जो।
तड़ित कमर में,
धरता हो।

क्षमा दया,
उसी को सोहें।
पत्थर का कलेजा,
रखता हो।

यज्ञ रिचा को,
हाथ में ले के,
जहां उठाये,
नर महाकुदाल।

एक नया हो,
खडा भगीरथ,
हो जाए ये,
धरा निहाल.

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