बीतते क्षणों में...



दे के अपनापन अनोखा,
सीख सौ-सौ काम वाली।
आज जबकि नेह बाँधा,
तुम विदा दे जा रहे हो।

अश्रुओं की लड़ी दे दूँ,
नेह जल की झड़ी दे दूँ।
थाम अंगुलियाँ निहारूँ,
बात कोई बड़ी दे दूँ।

बाँस के दो गोल पत्ते,
मैं फुला के गीत गाऊँ।
लूँ स्तवन में नाम ज्योंकि,
तुम विदा दे जा रहे हो।

साँझ-दिव, प्रति मास के दिन,
झड़ी ठिठुरन ताप के दिन।
तुमने कूची से सँवारे,
कटु निठुर संताप के दिन।

धनुष कितने तुमने बाँधे,
मेघ भर-भर अपने काँधे।
और अब जो रंग फूटे,
तुम विदा दे जा रहे हो।

रात बीती बात बीती,
अर्गला के साथ बीती।
सुभट धीरजधर बने तुम,
सुन सके तुम आपबीती।

और फिर संबल बना के,
सँध से ज्योति दिखा के,
नेत्र में जब प्राण जागा,
तुम विदा दे जा रहे हो।

ठीक तुमने ही तपाया,
किन्तु तुमने कुछ न पाया।
इस हुताशन से निकल के,
मैंने ही वरदान पाया।

धरणी को मंजु बीज दे के,
स्वेद दल की सींच दे के।
अब कुटज जो फूलते हैं,
तुम विदा दे जा रहे हो।

रोक लो पग दर्श ले लूँ,
भाल पर एक स्पर्श ले लूँ।
माँग लूँ कि हर क्षमा अब,
तुमसे उर का हर्ष ले लूँ।

गगन भर आशीष दे के,
वरद मेरे शीश दे के।
स्नेह का प्रतिरूप रख कर,
तुम विदा दे जा रहे हो।

दे विदा भर आँख भींजूँ,
नव के लिए अइपन संवारूँ।
मन्त्र जो तुमने सिखाये,
गीले कंठ से उचारूँ।

यह विदा विस्तार ही है,
नव किरण संचार ही है।
मान मुक्ति का सिखा के,
तुम विदा दे जा रहे हो।




17 टिप्पणियाँ:

संजय भास्‍कर said...

नव वर्ष पर सार्थक रचना...अविनाश भाई
.......नववर्ष आप के लिए मंगलमय हो

शुभकामनओं के साथ
संजय भास्कर
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

Anupama Tripathi said...

यह विदा विस्तार ही है,
नव किरण संचार ही है।
मान मुक्ति का सिखा के,
तुम विदा दे जा रहे हो।

बहुत सुंदर शब्द बिदाई के ...
हृदयस्पर्शी ...!
आपको नव वर्ष की अनेक मंगलकामनाएं .....!!

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

अविनाश जी! आपकी रचनाएं हमेशा मुग्ध कर जाती हैं. एक सलिल की तरह प्रवाह हमेशा मन को मोह लेता है!! बहुत दिनों बाद यह कविता पढ़ने को मिली!!मगर दिल में बस गयी!!

प्रतुल वशिष्ठ said...

"बिन कहे तुमने विदा ली
बिन कहे तुम आ गये हो
दुःख न देना चाहते तब
अब अचानक भा रहे हो."

आपकी कविताओं की प्रतीक्षा रहती है...कभी-कभी कुछ कहते नहीं बनता ... फिर भी आपको छेड़ने के लिये कमियाँ तलाशने में लगा रहता हूँ.

साँझ-दिव और मास के दिन,
झड़ी ठिठुरन ताप के दिन।
तुमने कूची से सँवारे,
कटु निठुर संताप के दिन।
....... अविनाश जी, पहली पंक्ति में क्या कमी है?

Avinash Chandra said...

अह!
मैं कब से सोच रहा था कि क्यूँ अटपटा लग रहा है।
टाइप करते हुए भूल हो गई थी, ठीक किया है। प्रतुल जी धन्यवाद।

कविता रावत said...

बहुत बढ़िया प्रस्तुति..
आपको सपरिवार नववर्ष २०१२ की हार्दिक शुभकामनायें..

प्रवीण पाण्डेय said...

गत पलों का एक स्मृतिपाश देकर जा रहे हो

Arvind Mishra said...

बीतते साल की इस भावभीनी कविता के लिए आभार....यही रचना धर्मिता बनी रहे नए साल में भी ...बहुत बहुत शुभकामनाएं!

प्रतिभा सक्सेना said...

और इन अंतिम पलों को नेह-भीना मान दे कर ,
दूर जाते इन पगों को अतिथि का सम्मान दे कर ,
भावना की भेंट दे तुमने मुझे ऐसे निहोरा,
सौंपता हूँ कवि तुम्हें, तम में किरण-संधान के स्वर!
*

संजय @ मो सम कौन... said...

मेरी दादी हमें सिखाया करती थी कि आने वाले का सत्कार करो और जाने वाले को नमस्कार।
कुछ ऐसी ही भावना कैलेंडर के बदलते पन्नों के लिये।
आने वाला समय यूँ ही रचनात्मकता को चार चाँद लगाता रहे।
ऐसी रचना आने पर इंतजार सार्थक हो जाता है।

Deepak Saini said...

आपको और परिवारजनों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.

Padm Singh said...

सुंदर रचना...
नववर्ष की मंगल कामनाएँ

Abhishek Ojha said...

मुग्ध हूँ कि ऐसा लिखने वाले भी हैं. ये बना रहे !

Smart Indian said...

गुज़र गया अपना है वह भी ...

देवेन्द्र पाण्डेय said...

मुग्ध कर देने वाली रचना। आप जैसे लेखक और प्रतुल जी जैसे सुधारक इस ब्लॉग जगत में हैं, यह आनंद का विषय है।

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

.


प्रियवर अविनाश जी
नव वर्ष की मंगलकामनाओं सहित अनंत शुभकामनाएं !
…बहुत अंतराल के पश्चात् मिल रहे हैं न … … …

आपकी रचनाओं का आनंद अभिव्यक्ति की परिधि से परे है …
अभी कुछ पुरानी प्रविष्टियां भी पढ़ीं आपकी …
जितना साधुवाद दूं , कम होगा …

रात्रि की उतरार्द्ध वेला में हृदय से कामना है कि मां सरस्वती की कृपा बनी रहे … तथास्तु !

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुन्दर ....यह रचना कैसे छूट गयी पढ़ने से ? तुम्हारे लिखे को पढ़ना मन को संतुष्ट करता है