चुप नहीं जिन्दगी...

तुम्हे छू कर जो,
हो गयी थी मुकम्मल.
आजकल मुझसे,
हर एक दिन का,
हिसाब मांगती है.
जिन्दगी फिर भी,
चुप तो नहीं.




अव्वल...

नसीब-तमीज-हुनर,
से झगड़ कर.
वो हाशिये पर,
लिखती है ऱोज,
मेरी जिन्दगी.
बगैर सफाई के,
नम्बरों भी,
अव्वल है अम्मा.




जो रुकती जिन्दगी...

रुक जाती तो,
एक बारगी मुड़ के,
देख लेता तुम्हे.
या करता इन्तजार,
तुम्हारे आ जाने का.
जिन्दगी में कमबख्त जिन्दगी,
रुकती क्यूँ नहीं?




उस पार जिन्दगी...

अपनी-अपनी लकीरों से,
घिरे अजनबी शख्स.
एक से दिखते,
महसूसते होंगे.
और सोचते होंगे,
खुशनसीब है,
उस पार जिन्दगी.




कलम..

तुम्हारे बारे में लिख देना,
या तुम्हारा छू लेना इसे.
दौड़ जाता है रगों में इसकी.
जिन्दगी काश मेरी भी,
इतनी ही आसान होती.






कैद जिन्दगी...

वो चुनती है रोज़,
गुलमोहर की पंखुड़ियाँ.
मैं भींचता जाता हूँ,
खुशबू छुपाने की,
मुसलसल कवायद में.
घुटते-घुटते ही,
घुल जाती है जिन्दगी.




जिन्दगी तारों की...

टिमटिमाते तारों में जरुर,
जिन्दगी होती होगी अम्मा.
दिन-हफ़्तों में गोया,
रूठ जाया करती है.




बदल दें...

मेरे लिए देखते सपने,
बुनते-बनाते रास्ते,
जो खप गई,
तुम्हारी पूरी की पूरी.
आओ अब्बू अब वो,
जिन्दगी बदल लें.

20 टिप्पणियाँ:

देवेन्द्र पाण्डेय said...

मासूस भावनाओं का सफल चित्रांकन..जहाँ कैमरा नहीं पहुंच पाता।

vandana gupta said...

ज़िन्दगी का हर पहलू उतार दिया है……………भावपूर्ण अभिव्यक्ति।

प्रवीण पाण्डेय said...

एक जिन्दगी, हजार उम्मीदें। कहाँ से शुरु करें गिनती या न ही करें गिनती।

अरुण चन्द्र रॉय said...

आपकी कवितायें बिल्कुल अलग सी.. अज्ञेय सी होती हैं... क्षणिकाओं में आपने सागर से भाव समा दिए हैं !

विजय मधुर said...

sundar bhaw hain...

निर्मला कपिला said...

एक से एक बढ कर क्षणिकायें है--- कम्बख्त ये ज़िन्दगी मे ज़िन्दगी रुकती क्यों नही?????? वाह। शुभकामनायें।

Anonymous said...

बहुत ही ख़ूबसूरत मनोभावों से लिखी हुई रचना...मज़ा आ गया...

धर्म, अंधविश्वास या बेवकूफी ....

महेन्‍द्र वर्मा said...

निराले अंदाज में लिखी गई क्षणिकाएं...अच्छी लगीं।

संजय @ मो सम कौन... said...

अविनाश,
सभी क्षणिकायें एक से बढ़कर एक हैं। उस पार जिन्दगी..... सबसे बेहतरीन लगी मुझे(शायद सबको लगती ही होगी), लेकिन अव्वल... में कुछ खटक रहा है, एक बरा जरा दोबारा देखो तो। जानता हूँ तुम बुरा नहीं मानोगे, लेकिन फ़िर भी......:)

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

अविनाश जी! सबसे पहले तो हिंदुस्तानी ज़ुबान में क्षणिकाएँ कहने का शुक्रिया (बकौल गुलज़ार, जैसे लैला की माँग में सिंदूर, धर्म बदला गया बेचारी का)! ज़िंदगी को लगता है आपने रेत घड़ी (घड़ियाल बाबू की पत्नी) में भरकर उलट दिया है. ज़िंदगी आपकी हर क्षणिका के साथ एक बर्तन से दूसरे में फिसल रही है.
"अव्वल" पर मैं भी अटक गया था संजय जी की तरह. दुबारा देखा तो लगा कि टाइप करते वक़्त "बग़ैर सफाई के नम्बरों के भी" में "के"छूट गया है. ख़ैर जज़्बात दिल को छू रहे हैं.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

जीवन के हर भाव का चित्रण कर डाला.... बहुत अच्छा लगा सभी रचनाएँ पढ़कर ....
जिंदगी जो रुकती नहीं..... और कलम.... खास पसंद आये ....

दिपाली "आब" said...

sabhi kshanikaayein outstanding hai avi..kamaal kamaal..bahut acchi lagi

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

जीय रजा जीय!
मो सम कौन की बात पर ध्यान दिया जाय।

deepti sharma said...

jindagi ka har pal shamil hai aapki rachna mai
bahut achhi

Avinash Chandra said...

आप सभी का आभार!!
सलिल जी एवं गिरिजेश जी,
संजय जी से मैंने पहले कि कारण पूछ लिया था..और एक हद तक अपनी सफाई भी दे दी थी :)

मेरे हिसाब से यहाँ पूरा वाक्य देखें तो है...

"बगैर सफाई के नंबरों के भी अव्वल है अम्मा" ... जैसा की आपने कहा सलिल जी.
मगर इसमें से एक "के" हटा दें तो भी वाक्य वही रहता है..
"बगैर सफाई के नंबरों भी अव्वल है अम्मा"

ये मेरा मानना, समझना है, संभवतः छूट ली हो मैंने ...आगे अगर कोई कमी लग रही है तो सुझाएँ...

Anonymous said...

OMG.........!!! U Nailed it this time buddy...!!!

ab aap vo zubaan bol rahe hain...jo ham jaison ko samajh aaye... ;)

sab ki sab kamaal hai, kisi ek ko chun paana naamumkin hai...bohot bohot hi kamaal ke khayaal hain saare..toooooo good

अरुण अवध said...

बेहद असरदार और सुन्दर क्षणिकाएं है ,
कोई एक चुनना मुश्किल है !
बहुत बधाई !

प्रतिभा सक्सेना said...

बहुत सघन भाव भाव भरे हैं हर क्षणिका में -बहुत गहरी हो गई हैं.एक बार में पूरी माप नहीं मिलती,बार-बार रोक लेता है कोई अर्थ .

Avinash Chandra said...

धन्यवाद सभी का!

दिगम्बर नासवा said...

लाजवाब .. एक से बढ़ कर एक ... अलग अलग अंदाज़ की क्षणिकाएँ ...