मासूम भरोसा...

यूँ तो समझ है मुझमे,
मोहल्ले में सबसे होनहार हूँ।
मगर बचपना है मुझमे भी,
अल्ल्ढ़पन से कहाँ बेजार हूँ?

निपोर देता हूँ खीसें,
लट्ठमार पहलवान को।
बर्र के छत्ते तक,
डंडा भी पहुँच जाता है।

जीवन दादा के जामुन पर,
२-४ धेले भी कभी कभी।
चार छः खिड़कियाँ नहीं तोडी,
तो लानत है बैटिंग पर।

गड्ढों में कभी कभी गुठली के,
निशाने भी लगाये हैं।
रमा आंटी की छत पर जाने,
पतंग के कितने टुकड़े गिराए हैं।

गली के कुत्तों को दौडाते,
पगलाए सांड से भिड पड़ा।
साक्षात यम् ने दर्शन दिए ,
तभी आँख के कोरो ने,
पिता जी को देखा।

किलकारी मार मैंने कहा,
जा यमराज, भाग जा,
अब मेरा कोई कुछ,
बिगाड़ नहीं सकता.

कैद...

मेरी लाश पर आज,
मेरा कफ़न अकेला रोया।
कैद कर जिस्म में वजूद मेरा,
बन के लिहाफ मुझ संग सोया।

माँ भी न....

कल रात बहुत भीगा,
छींकता रहा रात भर।
बारिश का महीना है,
सब डांट रहे थे ,
अम्मा भी,
" मुए बादलों,
कोई और जगह नहीं मिली?"

नीयत....

कुछ लोगों के,
व्याकरण भी अजीब हैं।
गंदे उन्हें नापाक,
दिखायी देते हैं।
कभी कोई साफ़,
माली देखा है तुमने?


कुछ ख़ास लोगों के लिए...

मेरे शहर की एक,
ख़ास मिठाई है,
गुड की जलेबी।
गुड-चीनी से बनी।
कल रात मुझे,
गुड और चीनी ,
दोनों ही मिले।
मैं कल रात,
घर हो आया.