सुने ज़रा...

मेरी तारीफ़,
ना किया करें।
ना कहा करें,
के मैं काबिल हूँ।

मेरे मंतव्य,
को समझें।
फिर भले कहें,
के मैं जाहिल हूँ।

मुझे पंक ही,
रहने दें।
कोई पंकज,
नहीं मानें।

मगर मेरी,
बात को समझें।
के शायद मैं,
मुनासिब हूँ।

भाई से बैर,
सा क्यूँ है?
बाप अब गैर,
सा क्यूँ है?

बहन से क्या,
है अब लेना?
दूध अब जहर,
सा क्यूँ है?

क्यूँ है सब,
ख़ाक अब रिश्ते?
क्यूँ नहीं,
पाक अब रिश्ते?

खुद जवाब ढूंढें,
खुद अमल में लायें।
मेरी दिल की,
हर दुआ पाएं।

फिर मुझे,
काट भी देंगे।
दफन कर,
पाट भी देंगे।

तो मेरी,
रूह बोलेगी।
सुकून के साथ,
गाफिल हूँ.

प्रियतम.....

निष् दिन के तुम,

पार हो प्रियतम।

इस जीवन का,

सार हो तुम।

साँसे है पहचान,

तुम्हारी।

धड़कन का,

आधार हो तुम।

संध्या क्षितिज के,

समान मोहक।

कोयल की मधुर,

पुकार हो तुम।

दिनकर की,

उज्जवल आभा हो।

चन्दन की,

शीतलता तुम।

मेरे हिय के,

वासी तुम हो।

मेरे गीत,

मल्हार हो तुम।

मेरे ह्रदय के,

तरुण अरण्य में।

सोंधी मधुर,

बहार हो तुम।

मेरे गीत के,

पाषाणों पर,

सावन की पहली,

झरकार हो तुम.

सब समर्थ हैं....

माना तुझमे कर्ण नहीं है,
ना तू शिवी सा दानी है।
लेकिन क्यूँ तू शोक करे रे?
तू भी ब्रम्ह की ही वाणी है।

नीर बहा मत, हे मनु।
सलिल नहीं, वो अमित शांतनु।
व्यर्थ निधि क्यूँ आज करे रे?
कुलपति की कुल निशानी है।

चाक कुम्हार का भले सही है,
मधुरिम कोई मधुरिमा नहीं है।
पर नर क्यूँ संताप धरे रे?
भले न तू चक्रपाणी है।

अलि नहीं है, कली नहीं है।
कंटक क्यारी फली नहीं है।
हा कंटक! क्यूँ जाप करे रे?
महाव्याल भी अनुगामी है।

महाबली तेरी भुजा नहीं है,
ना है शिव, शैलजा नहीं है।
इनके क्यूँ तू ताप जरे रे?
हिमाद्री भी सुमेरु से अनजानी है।

अनय नहीं है, विनय नहीं है।
किसी को तुझसे प्रणय नहीं है।
क्यूँ हर क्षण आलाप करे रे?
सत्य प्रेम तो बलिदानी है।

अश्रु एक दिवस सिन्धु लेगा,
कृष्ण कभी पहिया धरेगा।
सर्पों को दुत्कारे कंटक,
पौरुष का परिचायक सुमेरु।
निंदा भी तो अभिमानी है।
दान का नो हो सामर्थ्य जिसको,
ऐसा कहाँ कोई प्राणी है?

Always...

Roaming in the gloom,
over my leprechaun travera,
I could see albatross coming,
flying vast wings from far tundra.
I know its' a sweet chimera.

But I cannot cease reckoning,
this apocryphal vibes,
I had been yearning for,
throughout my lunges,
couple with each of my dives.

The wallops being inseminated,
absymally in my elan vital.
sprut up throbbing,
baking my hysteria to the utter.

I am canting now thee,
come for an interview,
Let me take'em on,
before the next aurora dew.

Its' not a demur,
I'm not confrontin you.
Just aching for an antiphon,
for why I capped only brew.................