पुरानी प्रीत...

कब पता था,
प्रीत नई नई है?
तुम तो उसे,
सदियों जन्मों का,
नेह कहते थे.
मैंने तुम्हारे मन को,
प्यार से लबरेज समझा.
मखमली झाग को,
सूख के बैठने में,
कितना वक़्त लगना था.

2 टिप्पणियाँ:

संजय भास्‍कर said...

मखमली झाग को,
सूख के बैठने में,
कितना वक़्त लगना था.

.........बहुत खूब, लाजबाब !

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मखमली झाग को,
सूख के बैठने में,
कितना वक़्त लगना था.

बहुत खूब....खूबसूरती से मन के भाव लिखे हैं