दीवार...

क्यूँ रह जाते हो चुप?
क्यूँ नहीं पलटते?
क्यूँ नहीं तोड़ देते मुँह?
क्यूँ नहीं जताते हक़?
क्यूँ आक्रोश नहीं दिखाते?
क्यूँ चुप चाप करते,
जाते हो कर्म मान?
क्यूँ सदैव मीठे,
ही रहते हो.
पर शायद दीवारें,
बचाती हैं, छुपाती हैं,
सजाती हैं.
सभी हाल मुस्काती हैं.
लोगों को अपनाती हैं.
दीवारें कहाँ बोलती हैं,
चुप ही पाई जाती हैं.

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