रेत का दरख़्त...

आकृति स्नेह की,
वटवृक्ष सदृश थी.
तुमने छुआ, और फ़ैली.
आये वल्लरि बन,
कुछ विस्तृत हुई.
सम्मान दिया तो,
घुल एक हुई.
फिर छोड़ दिया,
तो बाकी है,
रेतीला दरख़्त.

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