क्षणिकाएं...(शिकायत..)


आखिरी शिकायत........

तुमसे तो शिकायत,
तक नहीं कर सकता.
आखिरी शिकायत तुम्हारे,
ना मिलने की जो है.




कलम माँ है...

मेरे गीतों को कलम से,
अनेकों शिकायत है.
कलम फिर भी लिखती है,
माँ नाराज़ भला क्यूँ हो?





दोस्त तुम्हारे...

सिर्फ तुम ही नहीं,
मेरे खून, निगाह,
साँस-धड़कन,
तुम्हारे इन दोस्तों,
को भी मुझसे,
बासाख्ता शिकायत है.





बढ़ती जूंएं...

तुम्हारी नाराजगी की,
कितनी जूंएं पडीं.
और ये बढ़ती,
ही जा रही हैं.
इससे तो अच्छा,
दे जाते.
तुम शिकायतों,
के चंद छाले.




माँ...

सूरज से-चाँद से,
सरयू पर बने,
पक्के बाँध से.
अरे कह भी दो,
अम्मा मेरे सिवा तुम्हे,
सबसे शिकायत है.





विसियस सर्कल...

एक बात तो,
सच थी तुम्हारी.
रिश्ता डोर नहीं,
विसियस सर्कल है.
मेरे तुम्हारे बीच,
कोई भी नहीं.
तुम्हारे मेरे बीच,
हैं कई शिकायतें.





अँधा आशिक...

काँटा-माली,
खाद-केंचुआ.
गुल के अंधे आशिक को,
इन सबसे शिकायत है.





ना करो...

तुम्हारे बेशुमार,
कच्चे रोजों पर उसने,
शिकायत तो नहीं की.
बेशक ना करो यकीन,
पर बात-बेबात,
खुदा से यूँ रोज,
शिकायत ना करो.

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