मित्र सूरज....

भूल गया था ज़रा,
मैना का चहकना क्या है।
याद धुंधला गयी थी,
फूलों का महकना क्या है।

कैसी होती है कल-कल,
अमराई के ट्यूबवेल पर।
महुआ से महक कर,
पुरवाई का ठरकना क्या है।

क्या है पतली सी एक,
पगडण्डी पर सरपट जाना।
टिकोरों के कच्चे रस से,
होठों का जलना क्या है।

कैसे आ जाते हैं रक्ष,
सात सिरों वाले बार बार।
और नानी की कहानी में,
वीर राजा बनना क्या है।

गईया के दुहने से ले कर,
दूध की दही रबड़ी तक।
फोड़ सारे लड्डू मोतीचूर,
सच्चे मोती ढूँढना क्या है।

गनीमत है अब तक,
सुबह उठने की आदत बची है।
तुम भी मिल जाते हो,
हर रोज़ बिना नागा किये।

और मैं देख लेता हूँ,
तुम्हारे रोशन आईने में।
सच्ची हंसी के मायने और,
सुकून से रोना क्या है।

इन सड़कों पर भागते,
देर रात सोती भीड़ से।
एक सा खाते रोजाना,
सुबह शाम छिड़कते डियो।

ऐसी जिन्दगी से मुझे,
बचाने का शुक्रिया कहूँ।
या करूँ सजदा तुम्हे।
लोगे तो तुम दोनों ही नहीं..............दोस्त...

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