मेरी अम्मा.........

रात तलक थी सीलन बदबू,
और गज़ब की बारिश थी.
आज सुबह की बात अलग है,
धूप धमक धड़क कर आई है.

भक्क झोंक दी सारी की सारी,
लकडियाँ चूल्हे में शायद.
अम्मा को लगता है मेरी,
याद बहुत फिर आई है.

अंगुलियाँ थिरक उठी करने,
आज फिर से टक्क-टनक.
मेरे बैगनी कंचों से शायद,
माँ ने फिर धूल हटाई है.

चुस्त सी थी पतलून मेरी जो,
फिर से कमर पर आई है.
यादों के धागों से की,
अम्मा ने आज सिलाई है.

रोशन मानस अधिक हुआ,
अंतस अधिक सुवासित है.
अगरबत्तियां ख़त्म हुई,
माँ ने बाती-धूप जलाई है.

नहीं बनायी रोटी मैंने,
सेंके आज पराठे हैं.
आज पराठों से आलू के,
खुशबू मेथी की आई है.

अम्मा को लगता है मेरी,
याद बहुत फिर आई है.

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