कौन पुण्य जो फल आयी हो?
दीदी तुम जैसे माँ ही हो।
पुलकित ममता का मृदु-पल्लव,
प्रात की पहली सुथराई हो।
मेरे अणुओं की शीतलता,
मनः खेचर की तरुणाई हो।
किस दिनकर की प्रखर प्रभा हो?
विभावरी से लड़ आयी हो।
शुभ्र दिवस, क्षण हुए सुभीते,
स्नेह कुम्भ तुम, जो ना रीते।
दीप्त तुम ही मेरे ललाट पर,
आँख से तुम ही बह आयी हो।
हा दीदी! लिखती हो कैसे?
रोती होगी, मैं अनजान!
बूझ नहीं पाता हूँ जब-तब
क्यों हहरा करते मन-प्राण?
आज तुम्हारा पत्र खोल कर,
कर पाता हूँ कुछ अनुमान।
कैसे अश्रु झिपों से झर के,
लिखते होंगे मेरा नाम।
भरना दीठ नयन में मेरी,
और विहँस उठना यह जान।
वर्ण-वर्ण पढ़ पत्र तुम्हारा
बिलख रहे हैं मेरे प्राण।
हर्ष का यह अतिरेक है दीदी,
जिससे भींजे विह्वल प्राण।
दिन विशेष की बात नहीं है,
जीवन भर का है अभिमान।जिससे भींजे विह्वल प्राण।
दिन विशेष की बात नहीं है,

29 टिप्पणियाँ:
बहुत प्यारी कविता है...!
अपनी दीदी के लिये आपकी यह भावभरी रचना बहुत सच्ची और अच्छी लगी ।
आपका शब्द विन्यास अद्भुत है। प्रात की पहली सुथराई और पुलकित ममता का मृदु-पल्लव जैसे भाव मुझे भी सूझते रहे लेकिन जिस सहजता से आप कहते हैं उस सहजता से शायद ही कोई कहे।
पूरी कविता का पठनसुख अवर्णनीय है। इस वर्ष में पहली कविता पढ़ी है अविनाश जी। आपको पढ़ना अलौकिक आनंद देता है।
जय हो दीदी के भैया की और उससे पहले और उससे ज्यादा जय हो तुम्हारी दीदी की जो तुम्हें नींद से जगाई।
लंबी अवधि के बाद, दीदी के नेह से खिंच कर लौट आया जो आत्म-निष्कासित भाई, ब्लाग जगत में उसका स्वागत है!
बहुत सुंदर
अच्छी रचना
बहुत डीनो बाद तुमने कुछ पोस्ट किया है .... बहुत सुंदर भाव इस रचना के .... दीदी के प्रति स्नेह छलका पड़ रहा है ।
बहुत अच्छा लगा , तुम्हारा लिखते रहना जरूरी है ... स्नेहाशीष ...
आज तुम्हारा पत्र खोल कर,
कर पाता हूँ कुछ अनुमान।
कैसे अश्रु झिपों से झर के,
लिखते होंगे मेरा नाम। ...
बहन के प्रेम को अनूठे शब्दों में ढालने की कला ... आपकी रचनाएं हमेशा ही आलोकिक अनुभव लिए होती हैं ... ये रचना भी उसकी एक कड़ी है ...
बहुत प्यारा गीत। दीदी की इतनी मनुहार के बाद बनता तो है !!
वाह प्यारे! अद्भुत!
बहुत ही प्यारी और कोमल कविता।
टिपण्णी… आप की तरह भावनाओं को शब्द देना आता तो कुछ कहता !
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (26.08.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .
अति सुन्दर!
प्यार भरी सुन्दर अभिव्यक्ति
☆★☆★☆
पुलकित ममता का मृदु-पल्लव, प्रात की पहली सुथराई हो।
मेरे अणुओं की शीतलता, मनः खेचर की तरुणाई हो।
दीप्त तुम ही मेरे ललाट पर, आँख से तुम ही बह आयी हो।
वर्ण-वर्ण पढ़ पत्र तुम्हारा बिलख रहे हैं मेरे प्राण।
हर्ष का यह अतिरेक है दीदी, जिससे भींजे विह्वल प्राण।
दिन विशेष की बात नहीं है, जीवन भर का है अभिमान।
आऽहऽऽ…!
कुछ अनुभूतियों , कुछ रिश्तों , कुछ अभिव्यक्तियों को उनकी विराटता के कारण व्यष्टि के वर्तुल में रखना संभव नहीं होता...
आपकी यह रचना भी ऐसी ही प्रतीत होती है बंधुवर अविनाश चंद्र जी !
सुंदर रचना के लिए आभार !
चलता रहे अनवरत उत्कृष्ट लेखन...
हार्दिक मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार
wow. beautiful.
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन: कोई दूर से आवाज़ दे चले आओ मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
सुन्दर भाव
बहुत सुंदर वाह !
कहाँ गायब हो गए भाई?
http://bulletinofblog.blogspot.in/2016/09/1.html
"आदरणीय श्रीमान |
सादर अभिवादन | यकायक ही आपकी पोस्ट पर आई इस टिप्पणी का किंचित मात्र आशय यह है कि ये ब्लॉग जगत में आपकी पोस्टों का आपके अनुभवों का , आपकी लेखनी का , कुल मिला कर आपकी प्रतीक्षा कर रहा है , हिंदी के हम जैसे पाठकों के लिए .........कृपया , हमारे अनुरोध पर ..हमारे मनुहार पर ..ब्लोग्स पर लिखना शुरू करें ...ब्लॉगजगत को आपकी जरूरत है ......आपकी अगली पोस्ट की प्रतीक्षा में ...और यही आग्रह मैं अन्य सभी ब्लॉग पोस्टों पर भी करने जा रहा हूँ .....सादर "
हिंदी ब्लॉग जगत को ,आपके ब्लॉग को और आपके पाठकों को आपकी नई पोस्ट की प्रतीक्षा है | आइये न लौट के फिर से कभी ,जब मन करे जब समय मिलते जितना मन करे जितना ही समय मिले | आपके पुराने साथी और नए नए दोस्त भी बड़े मन से बड़ी आस से इंतज़ार कर रहे हैं |
माना की फेसबुक ,व्हाट्सप की दुनिया बहुत तेज़ और बहुत बड़ी हो गयी है तो क्या घर के एक कमरे में जाना बंद तो नहीं कर देंगे न |
मुझे पता है आपने हमने बहुत बार ये कोशिस की है बार बार की है , तो जब बाक़ी सब कुछ नहीं छोड़ सकते तो फिर अपने इस अंतर्जालीय डायरी के पन्ने इतने सालों तक न पलटें ,ऐसा होता है क्या ,ऐसा होना चाहिए क्या |
पोस्ट लिख नहीं सकते तो पढ़िए न ,लम्बी न सही एक फोटो ही सही फोटो न सही एक टिप्पणी ही सही | अपने लिए ,अंतरजाल पर हिंदी के लिए ,हमारे लिए ब्लॉगिंग के लिए ,लौटिए लौटिए कृपया करके लौट आइये
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अहा!बहुत सुंदर ������ बता नहीं सकता कि कितना आनंद आया पढ़कर ... ऐसा लगा जैसे नेह की शीतल नदी में डुबकी लगा रहा हूँ। वैसे तो मेरी कोई दीदी अर्थात बड़ी बहन नहीं हैं लेकिन अनुमान लगाता हूँ कि अगर होतीं तो शायद कुछ ऐसा ही नेह मुझे भी होता उनसे ... ♥️
परम सम्माननीय अविनाश जी
ब्लॉग दुनिया के विशिष्ट गुणियों की याद आने पर उन्हें कभी कभी खोजने निकल जाता हूं
आज पुनः आपके घर पहुंच कर बहुत प्रसन्नता हुई
आशा है, आप सपरिवार स्वस्थ सानंद होंगे
आपकी मेल आईडी / मोबाइल नंबर ध्यान में नहीं आए । आप यह कमेंट देखें तो अवश्य प्रत्युत्तर देने की कृपा करें
मेरे मोबाइल/व्हॉट्सऐप नंबर हैं 9314682626
आप फेसबुक पर हों तो लिंक अवश्य भेजें, कृपया
सादर दीपावली की शुभकामनाओं सहित
राजेन्द्र स्वर्णकार
🙏🙏🙏
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