नेत्र-ज्योति...


रंग बसा करते,
हैं नयन में,
नेत्र अलग अलबेले.

ज्योति रवि की,
वही रहे है,
नयन ह्रदय बस खेले.

किसी को सुन्दर,
किसी को क्रंदन,
इस दुनिया के मेले.

अक्ल चेतना,
अनुभव मिमांसा,
और विषय का ज्ञान.

रंग दिखाए,
सही मनुज को,
दे सटीक अनुमान.

क्रोध दंभ हो,
हावी तो सब,
रंग श्वेत और श्याम.

नहीं विवेक की,
शक्ति जिसमे,
मनुज नहीं वह श्वान.

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