माँ की पाती....

मुझे कहे सोना, चाँदी,
राजा बेटा, फूल.
हीरा, मोती, पन्ना,
समझ नहीं पाती है.

जाने कितने दिनों से,
सोच कर रखी.
सहेजी बताने को,
अनजानी बातें अनकही.

जब बैठती है,
जुगाड़ सब लिखने.
दवात कागज़ कलम में,
चेहरा मेरा ही पाती है.

देती है भर भर,
सात आसमान दुआएँ.
लेती है अपने पूरे,
आँचल में बलाएँ.

बात क्या थी,
लिखने बताने को.
सोचना तक भी,
भूल जाती है.

बाबूजी ही मुझे,
लिखा करते हैं चिट्ठियाँ.
छुटके के नखरे,
अम्मा की बतियाँ.

माँ को कागज़,
पूरा नहीं पड़ता.
आँचल पे लिख के,
मेरा आसमान बनाती है.

0 टिप्पणियाँ: