कौन पुण्य जो फल आयी हो?
दीदी तुम जैसे माँ ही हो।
पुलकित ममता का मृदु-पल्लव,
प्रात की पहली सुथराई हो।
मेरे अणुओं की शीतलता,
मनः खेचर की तरुणाई हो।
किस दिनकर की प्रखर प्रभा हो?
विभावरी से लड़ आयी हो।
शुभ्र दिवस, क्षण हुए सुभीते,
स्नेह कुम्भ तुम, जो ना रीते।
दीप्त तुम ही मेरे ललाट पर,
आँख से तुम ही बह आयी हो।
हा दीदी! लिखती हो कैसे?
रोती होगी, मैं अनजान!
बूझ नहीं पाता हूँ जब-तब
क्यों हहरा करते मन-प्राण?
आज तुम्हारा पत्र खोल कर,
कर पाता हूँ कुछ अनुमान।
कैसे अश्रु झिपों से झर के,
लिखते होंगे मेरा नाम।
भरना दीठ नयन में मेरी,
और विहँस उठना यह जान।
वर्ण-वर्ण पढ़ पत्र तुम्हारा
बिलख रहे हैं मेरे प्राण।
हर्ष का यह अतिरेक है दीदी,
जिससे भींजे विह्वल प्राण।
दिन विशेष की बात नहीं है,
जीवन भर का है अभिमान।जिससे भींजे विह्वल प्राण।
दिन विशेष की बात नहीं है,