आसमान में दाग...



बैठे रहो,
सोचो भरसक.
मनन करो,
विचारों मुझे.

निंदा करो,
उलाहना दो.
आक्षेप निकाल,
फेंको मुझ पर.

हो क्रोधित,
भौहें चढ़ाओ.
उठाओ आस्तीनें,
फडकाओ  भुजाएँ.

व्यूह रचो,
करो उपाय.
अबकी आए,
जाने न पाए.

कोसो मुझे,
शापित करो.
यज्ञ-हवन,
बाधित करो.


विष ग्रंथि,
भेजो भेंट.
शर उठा,
करो आखेट.

निशा दिवस,
ध्यान करो.
विपत्ति का,
आह्वान करो.

मलय पवन,
दूषित करो.
अधम नाम,
भूषित करो.

यदि तुमसे,
ये न होगा.
मैत्री गीत,
रव न होगा.

वरना तनिक,
कलम उठाओ.
रक्त-विष ,
उसे डुबाओ.

लिखो या,
अपशब्द मुझको.
तनिक या,
छींटे गिराओ.

मुझे भी,
मालूम रहे.
आसमान में,
दाग था.

8 टिप्पणियाँ:

Amitraghat said...

"बेहतरीन,एक रवानगी थी कविता में ...साथ में गम्भीर विचार भी...."

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

waah, kya khoob!

स्वप्न मञ्जूषा said...

शब्द संसार बहुत व्यापक है आपका...
भावाभिव्यक्ति अनुपम है...
बहुत ख़ुशी हुई है पढ़ कर...
ऐसे ही लिखते रहिये...

SKT said...

वाह, क्या खूब लिखा आपने! मज़ा आ गया। बधाई स्वीकारें!

ZEAL said...

Beautiful creation !

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

हम त सब्द रचना देखिए के दंग हैं अऊर जब भाव का चिंतन किए सब्द नहीं मिल रहा है प्रसंसा के लिए... छोटा छोटा छंद में गजब का पैनापन है!!

Avinash Chandra said...

Aap sabhi ka hriday se aabhar

स्वप्निल तिवारी said...

Tumne samjhaya..main samjh gaya..aur ab soch raha hun pahle kyun ni samjh paya..itna b klisht nahi tha..han par ab samjha hun to lazawab lagi ye rachna mujhe...