क्षणिकाएँ.....

दोजख की नींद....

सबके काँटों को,
ताज करना खुदा.
मुझे सूली के हवाले,
आज करना खुदा.
देना दोजख का,
एक टुकडा मुझे.
जन्नत में मुझे,
नींद नहीं आएगी.



बतियाती दीवारें...

खासे आँगन में,
पहले दो, फिर चार,
अब बारह दीवारें हैं.
माँ के लिए दो,
छत पर कमरे हो जाते.
दीवारें बतिया रही थी,
कल रात ही सुना.



फौज...

बहुत देर छाई रही,
बादलों की एक फौज.
ना तुम आये,
ना तुम्हारा पैगाम.
फौज की भी टुकड़ियाँ,
लौटने लगी हैं.



रंग...

बनाई तुम्हारी तस्वीर,
सोचा रंग भर दूँ.
होठों को कलाई काट,
बड़ी देर भिगोता रहा.
बिखरा लहू गालों तक,
शब भर रोता रहा.
तस्वीर गीली होगी,
संभाल के उठाना.



तुम्हारी अदा....

बड़ी भारी पड़ती है,
खीसें निपोर तुम्हारी,
मुस्कुराने की अदा.
मैं बात बेबात,
झल्लाए लोगों से,
उलझ जाता हूँ बेवजह.



स्याह मन....

काली स्याही बगैर कोई,
वजूद नहीं कोरे कागज़ का.
सब जानते हैं. वो भी,
जिन्हें परहेज है,
सांवली बहूरानी से.



आदत...

सुना है बचपन से,
छागली का दूध,
पीने वाले बच्चों को,
दूध गाय का नहीं जमता.
अमृत ना पिलाना,
आदत है पड़ी,
मुझे हलाहल की.




बागवान....

बारिश हो ना हो,
फूल खिले ना खिलें.
फल आयें ना आयें.
वो नहीं भूलते,
एक दिन भी देना पानी.
इतने काबिल तो,
केवल अब्बा है.
खुदा से भी कहाँ,
होगी ऐसी बागवानी.





बदलाव...

सूरज, किरणें,
और अरुणाई.
फागुन, रिमझिम,
और पुरवाई.
गीत थे, मीत थे,
झंकृत हिय संगीत थे.
अब तुम नहीं,
तो सबने,
बदल लिया है,
अपना अपना ठिकाना.

3 टिप्पणियाँ:

स्वप्निल तिवारी said...

sari kashanikayen mast hain re... wo fauz ki tukdi ..badlon ke tukde wali bat ...waah ..kya image thi ...aur haan abba ki bagwani ka koi zawaab nahi ..sach khuda bhi itne punctual nahi hain apne bageechon me pani dalne ke bare me ...heheh..bahut pyari kashanikayen ...

Taru said...
This comment has been removed by the author.
Avinash Chandra said...

:)