एक सुबह धनबाद की....

ठंडी हवा का,
मनभावन झोंका।
नहा के ओस में ,
खिड़की से आया
"उठो अनुज"
हवा मेरी बड़ी,
बहन है।
झर गए रात,
अगणित फूल,
गुलमोहर के
" अरे भाई!
मेरी प्रेयसी न,
आएगी इस राह।"
नटखट डालियों ने,
बरसा दी कुछ,
बची, संजोयी,
ओस की बूँदें।
शुभ्र, शांत, धवल।
वृक्ष, मस्त मंद,
सुगन्धित वायु।
चिडियों का,
गान अगान,
और सूर्य ,
वर देता किसी,
देवता की भांति।
नीले गगन पर,
खडा अकेला विजेता।
और कुछ चारण,
सफ़ेद,
भूरे बादल से।
मधुरिम सुबह ,
दिसम्बर की।
अहा कितनी,
सुन्दर थी.

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